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________________ १२३ के पांचमा अने छट्टो देवलोक. (दु ) के० सातमो अने आठमो देवलोक, ( चउक ) के० नवमो, दशमो अगीयारमो बारमो देवलोक, तथा (गेविज ) के० नव ग्रैवेयक अने ( अणुत्तरे ) के० पांच अनुत्तर ए छ ठेकाणे अनुक्रमे [ हाणि इक्विकं ] के० एक एक हाथनी हानी करवा. एटले त्रीजा चोथा देवलोके छ हाथर्नु, पांचमा छटे देवलोके पांच हाथर्नु, सातमां आठमा देवलोके चार हाथर्नु, नवमा दशमा अगीयारमा वारमा देवलोके त्रण हाथY. नव ग्रैवेयके बे हाथy अने पांच अनुत्तर विमाने एक हाथर्नु शरीर जाणवू. ॥ २११ ॥ ___ हवे विशेष सागरोपमना आयुष्यनी वृद्धिये करी सनत्कुमारादिकने विषे शरीरनुं मान कहे छे. कप्प दुगदुदुदु चउगे, नवगे पणगे य जिठिइ अयरा॥ दो सत्त चउद द्वारस, बावीसिगतीसतित्तीसा ॥२१२॥१ विवरे ताणिक्कुणे, इक्कारसगा उ पाडिए सेसा ॥ हत्थिकारस भागा, अयरे अयरे समहियंमि ॥ २१३)॥१ चय पुवसराराओ, कमेण ईगुत्तराइ वुद्वीए ॥ एवं ठिई विसेसा, सगंकुमाराइ तणुमाणं ॥ २१४ ॥ ___ अर्थ-(कप्पदुग ) के० पहेला अने बोजा देवलोकमां, (द) के० त्रीजा अने चोथा देवलोकमां (दु ) के० पांचमां अने छट्ठा देवलोकमां (दु) के० सातमा अने आठमा देवलोकमां, (चउगे) के० नवमा दशमा अगीयारमा अने बारमा देवलोकमां, (नवगे) के० नव ग्रैवेयकमां ( य ) के० अने (पणगे ) के० पांच अनुत्तर
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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