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१२४ विमानमां, ( जिठिइ ) के० उत्कृष्ट स्थिति आ प्रमागे-पहेला वे देवलोके, (दो अयरा) के० बे सागरोपमनी, बीजा वे देव लोके ( सत्त) के सात सागरोपमनी, त्रीजा बे देवलोके ( चउद ) के० चउद सागरोपमनी, चोथा बे देवलोके ( अट्ठारस ) के० अढार सागरोपमनी, नवमाथी बारमा सुधीना चार देवलोके ( बावीस ) के० बावीस सागरोपमनी, नव ग्रैयके ( इगतीस ) के० एकत्रीश सागरोपमनी, अने पांच अनुत्तर विमानने विषे ( तित्तीसा ) के० तेत्रीश सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थिति छे. ॥२१२ ॥ [ विवरे ] के.
अधिक स्थितिमाहेथी ओछी स्थिति काही नाखीये. पछी बाकी रहे तेमाथी ( ताणिणे ) के० एकरूप ओछो करीये, वली (इक्कारसगा उ पाडिए ) के एक हाथ ना पाडेला अगीयारीया भागने स्थानके जे ( सेसा ) के० बाकी रहेला ( हस्थिकारसभागा) के. एक हाथना अगीयारीया भाग तेने देवताना आयुष्यमां ( अयरे अयरे समहियंमि) के० एक एक सागरोपम अधिक थयु थकुं ॥ २१३ ॥ (चय पुनसरीराओ) के० पूर्व पूर्वना शरीरमांथी एक एक भाग ओछो करवो अने ( कमेण ) के० अनुक्रमे करीने ( इगुत्तराइ वुट्ठीए) के० एक एक सागरोपम आयुष्य स्थितिमा वधारवो. ( एवं हिइ विसेसा) के० एवीरीते आयुष्यनी स्थितिना विशेषपणाये एटले सागरोपमनी वृद्धिये करी (सणंकुमोराइ तणुमाण) के० सनत्कुमारादिक देवलोकना देवतानुं शरीरप्रमाण थाय ॥ २१४ ॥ ..समजूती एम छे के पूर्वाचार्योए देवताना शरीरचं प्रमाण तेमना सागरोपमना आयुष्य प्रमाण उपरथी ओछु अधिकुं कर्तुं छे. जोके ईशान तथा माहेंद्र देवलोके जे कांइ अधिक आयुष्य कयुं छे ते अहिं न गणवू. सौधर्म तथा ईशान देवलोकना देवता- देहमान