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________________ ११८ ख्याता द्वीप समुद्र जइये त्यारे अरुणवर नामनो द्वीप आवे छे, ते द्वीपनी वेदिकाना छेडाथी अरुणवर नामना समुद्रमा आगल बेंतालोश हजार योज जइये त्यां पाणाना उपरनां तलीयाथी उंचो अप्कायमय महांधकाररूप तमस्काय नीकलयो छे, ते अगीयार सो योजन सुधी भीन सरखो थइने पछीं तीछौँ विस्तार पामतो पामतो सौधर्म ईशान सनत्कुमार अने माहंद्र ए चार देवलोकने आवरी उचो ब्रह्म देवलोकना अरिष्ट नामना त्रीजे प्रतरे जई रह्यो. ए तमस्काय नीचे भोंतने आकारे, शरावलाना तलोयाने आकारे अने उपर कूकडाना पांजराना आकारे. ए, एनुं संस्थान छे. ते धुरथी संख्याता योजन उंचो छे अने नीचेना विस्तारे संख्याता योजन छे, त्यांची आगलना विस्तारे असंख्याता योजन प्रमाण छे. अहिंथी ए तमस्काय असंख्यातमे द्वीप समुद्रे उठयो छे माटे ए तमस्कायनो परिधि असंख्याता योजन प्रमाण जाणयो. . ए तमस्कायना महत्वपणाने माटे पूर्वना गीतार्थ पुरुषोए एम कडं छे के कोई महर्दिक देवता त्रण चपटी वगाडीये तेटला वखतमां एकवीश वार जंबुद्दीपने प्रदक्षिणा करी आवे तेज देवता छमहिने तमस्कायना योजन विस्तारने उल्लंघे, परंतु उपर असंख्याता योजनना विस्तारवाली तमस्कायनी जगति उल्लंघे नहीं. ॥२०२॥ पंचमकप्पे रिट्ठमि, पत्थडे अट्ठ कण्हराइओ॥ सम चउरंसक्खाडय,ट्ठिइओ दोदो दिसि चउक्के ॥२०३।। ... अर्थ-(पंचमकप्पे ) के० पांचमा देवलोकने कि (रिलुमि पत्थडे ) के० वीजा रिष्ट नामना प्रतरने विवे ( अटकण्हराइओ) के० आठ कृष्णराजीओ छे. ते कृष्णराजी ( समचउरंसक्खाडयदिइओ ) के० समचतुरस्त्र नाटकनी रंगभूमि सरखी छे, तथा
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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