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________________ (दिसि चउके ) के० चारे दिशामां ( दो दो) के० वे बे कृष्णराजी छे. ॥ २०३ ॥ ए कृष्ण राजीनी समजुती एम छे के-पांचमा देवलोकना त्रीजा अरिष्ट नामना प्रतरने विषे अरिष्ट विमाननी चारे दिशाये सचित्त अचित्त पृथ्वीमय वे बे कृष्णराजी छे. तेमां उत्तर दिशानी बे कृष्णराजी पूर्व पश्चिम दिशाये लांबी छे, अने दक्षिण दिशानी बे कृष्णराजी पण पूर्व पश्चिम दिशाये लांची छे. त्यां बने कृष्णराजीपांहे पहेली पूर्व दिशानी अभ्यंतर कृष्णराजी ते दक्षिण दिशानी बाहेरनी कृष्णराजीने फरसे छे, तेज वीजी दक्षिण दिशानी अभ्यंतर कृष्णराजी ते पश्चिम दिशानी बाहेरनी कृष्णराजी ने फरसे छे, तथा त्रोजी पश्चिम दिशानी अभ्यंतर कृष्णराजी ते उत्तर दिशानी बाह्य कृष्णराजीने फरसे छे, अने चोथी उत्तर दिशानी अभ्यंतर कृष्णराजो ते पूर्व दिशानी बाह्य कृष्णराजीने फरसे छे. ए प्रमाणे चारे दिशानी सर्व मली आठ कृष्णराजी छे. तेज अर्थने कहेनारी नीचेनी गाथा छे. पुवावर उत्तर दा-हिणा हि मज्झल्लियाहि पुवाओ ॥ दाहिणउत्तर पुवा, वराओ बहि कण्हराईओ ॥२०४॥ ____ अर्थ-( दाहिणउत्तरपुवावराओ) के० दक्षिण उत्तर पूर्व अने पश्चिम दिशा तरफनी ( बहिकण्हराईओ) के० बाहेरनी कृष्णराजीओं ( पलाओ ) के० पूर्वथी ( पूछावरउत्तरदाहिणाहि ) के० पूर्व पत्रिम उत्तर- अने दक्षिण दिशा तरफनी ( मज्झल्लियाहि ) के० अंदरनी कम जोओनी साथे जोडायली छे. ॥ २०४ ॥ पुबारा टलंगा, तंसा पुण दाहिगुत्तरा बज्झा ॥ . अभि पर उमा, सव्वावि य कण्हराईओ ॥ २०५॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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