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________________ रत्नप्रभाना उपरना भागने विषे ( नरतिरियाइय ) के० मनुष्य तिर्यंच विगेरे रहे छे. तथा तेनी उपरना (गयणे ) के० आकाशमां (जोइसा ) के० ज्योतसी देवता रहे छे ॥ २०१॥ हवे उपरना सात राजलोकना अट्ठावीश खांडवाना विभाग कहे छे अने जेटला खांडवे जेटला देवलोक थाय छे ते कहे छे. छसु खंडगेसु य दुगं,चउसु दुगं छसुय कप्प चत्तारि॥ चउसु चउ सेसेसु य,गिविज्जणुत्तर य सिद्धं ते।।२०२॥ ____ अर्थ-ओगणत्रीशमी रेखा उपरना ( छसु खंडगेसु) के० छ खांडवाने विषे ( दुर्ग) के० सौधर्म अने ईशान ए बे देवलोक छे, तेना उपरना ( चउसु ) के० चार खांडवाने विषे (दुगं) के. सनत्कुमार अने माहेंद्र ए बे देवलोक छे. तेना उपरना (छसु ) के० छ खांडवाने विषे ( कप्पचत्तारि) के० ब्रह्म लांतक शुक्र अने सहसार ए चार देवलोक छे, तेना उपर ( चउसु ) के० चार खांडवाने विष ( चउ) के० आनत पाणत आरण अने अच्युत ए चार देवलोक छे. ए वीश खांडवा थया. अने पांच राजप्रमाण उर्द्धलोक थयो. तेना उपर (सेसेसु) के० बाकीना आठ खांडवा रहा छ तेमां नीचेना चार खांडवाने विषे ( गिविज्ज ) के० नव ग्रैवेयक छे अने उपरना चार खांडवाने विषे ( अणुत्तर ) के० पांच अनुत्तर छे. अने तेना (अंते ) के० उपर एटले चौद राजना उपर (सिद्ध) के० सिद्ध भगवंत सहित सिद्धशिला छे. अहिं सूचिरज्जु प्रतररज्जु अने धनरज्जु ए त्रण राज छे. तेनी संख्या ग्रंथांतरयी अथवा लोकनालथी जाणवी ॥ २०२ ॥ हवे लोकांतिक देवता कया देवलोके अने कया विमाने रहे छे ? ते अहिं प्रसंगथी कहे छे के-आ जंबुद्धीपथी तीर्छा असं
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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