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________________ ११६ अर्थ-( अहतिरियउट्टलोया ) के० नोचेना सात राजलोक, मध्यनो तिर्यंचलोक अने उपरना सोत राजलोक ए त्रणे लोक अनुक्रमे ( सगरज्जु ) के० सात गज प्रमाण (जायण सया अट्ठार) के० अठारसो योजन, अने (ऊगसगरज्जूमाणाइ) के० काइक ओछा सातराज प्रमाणवाला छे. एटले नीचेनो अधोलोक सातराज प्रमाणथी कांइक झाझेरो ऊंचो के. मध्यलोक अद्वार सो योजननो ऊंचो छे; अने उपरना लोक सात राज प्रमाणथी कांइक ओछो एटले असंख्याता योजन ओछो उंचो छे. वली ते त्रण लोक (निरयनरसुराइ भाविल्ला ) के नारकी मनुष्य अने देवता विगेरेथी भरेला छे. ॥२०॥ इक्किक्करज्जु इकिक-निरय सग पुढवी असुर पढमे ॥ तह वंतर तदुवरि नर-तिरियाइय जोइसा गयणे॥२०१।। ___ अर्थ (इकिकरज्जु ) के० एक एक राजप्रमाण (इकिकनिरय ) के० एक एक नरक पृथ्वी छे, तेवी ( सग पुढवी) के० सात नरक पृथ्वीना सात राजलोक छे. तेमां (असुर ) के० असुर कुमारादिक भुवनपति देवो (पढमे) के०पहेली रत्नप्रभा नरकपृथ्वीने विषे रहेछे,एटले पहेली रत्नप्रभा नरक पृथ्वीना पींड एक लाख एंशी हजार योजननो छे, तेमांथी एक हजार योजन नीचेना मूकी देवा अने एक हजार योजन अरना मूकी देवा. बाकीना एक लाख अठोतेर हजार योजनमां भुवनपति देवो रहे छे. नह के० तथा वंतर के० व्यंतर देवो तेना उपर रहे छे एटले रत्नप्रभा पृथ्वीना जे उपरना एक हजार योजन मूक्या छे तेमांथी एक सो योजन उपर मूकी देवा अने एक सो योजन नीचे मूकी देवा, वाकीना बच्चेना आठ सो योजनमां व्यंतर देवो रहे छे. अने ( तदुवरि ) के० ते
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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