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________________ ११५ ए छे के ― हे गौतम! चोथी पंकप्रभा पृथ्वीनो पींड एक बीस हजार योजननो छे, तेनी नीचे वीश हजार योजननो घनोदधि पींड छे, तेनी नीचे असंख्याता योजना बनवात पींड छे, तेनी नीचे असंख्याता योजनना तनवात पींड छे. ए सर्व अवगा - हीने नीचे जइये त्यां असंख्याता योजन प्रमाण आकाश प्रदेश के. ret आकाश प्रदेश घनवात तनवातकी असंख्यांत गुणो छे. ते आकाश प्रदेशने अर्द्धथी झाझेरा भाग अवगाहीने नीचे जइये त्यां नीचेना सात राजलोकना मध्य भाग छे एटले ते स्थानथी नीचे अने उंचे साडा त्रण साडा त्रण राजलोक अधोलोकना छे. ॥ तथा चोक्तं पंचमांगे ॥ प्रश्नः कह णं भंते उढलोगस्स आयाममझे पण्णत्ते ? ॥ हे भगवन् ! उर्द्धलोक सात राज प्रमाण छे तेनेा मध्यभाग क्यां छे ? ॥ उत्तरः गोयमा ! उधिं सणकुमार माहिंदाणं कप्पाणं बंभलोए कप्पे रिविमाणपत्थडे एत्थ णं उडलोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते || भावार्थ एछे के रुचक प्रदेशनी उपर नव सो योजनमां ज्योतीषचत्र छे, ते ज्योतीषचक्रने उल्लंघन करी उपरना भाग उद्धलोक कहेवाय छे, ते उपर लोकांतिक सुधी सात राज कांइक उणा छे, अने ओगणत्रीशमी रेखा उपर सात राज पुरा छे. ते अरना सात राजनेा मध्यभाग ते चार देवलोकने उल्लंगी पांचमा ब्रह्मलोकना रिष्टनामा त्रीजा प्रतरनी पासे लोकांतिक देवतानां विमान छे, तेनी पासे उर्द्धलोकना मध्यभाग छे. त्यांथी साडा त्रण राज नीचे तथा सोडा त्रण राज उपर उर्द्धलोक छे. ए प्रमाणे सर्व लोकना मध्यभाग तथा अधोलोक अने उर्द्धलोकना मध्य भाग कया. १९९ ॥ ? मगरज्जु जोयणसया, अट्ठार ऊण सगरज्जुमाणाइ ॥ अहतिरियउड्डलोया, निरयनरसुराइ भाविला ||२०० ||
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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