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________________ अर्थ-( रविणो) के० सूर्यना (उदयत्थंतर ) के० उदय अने अस्तना क्षेत्रनुं अंतर ( चउणवइ सहस्स ) के० चोराणु हजार (पणसय ) के० पांच सो अने ( छत्रीसा ) के० छवीश योजन तथा ( वायाल सहि भागा ) के० एक योजनना साठ भाग करीये तेवा बेतालीश भाग एटलं ( कक्कडसंकंति दियहमि ) के० कर्क संक्रांतिना पहला दिवसने विषे सूर्य चाले छे. ॥ १८० ॥ एयंमि पुणो गुगए,ति पंच सग नवहि होइ कममाणं ॥ तिगुणमि य दोलक्खा,तेसीइ सहस्स पंच सया॥१८॥१ अर्थ-(पुगो ) के० वली ( एयंमि ) के० ए पूर्व कहेला उदय अस्तना आरना योजनने (ति पंच सग नवहि) के० त्रण पांच सात अने नाथी (गुणए) के० गुणीये अर्थात् उदय अस्तना अंतरने त्रण गुणा, पांच गुणा सात गुणा अने नव गुणा योजन करीये त्यारे ( कममाणं) के० अनुक्रमे जे प्रमागे (होइ ) के० याय छे. ते कहे छे. ज्यारे ( तिगुणमि य ) के० त्रणगणुं करीये त्यारे (दोलकवा के बे --7, (तेसोइ सहम्स) के० व्यासी हजार, (पंच) सया) के० पांच सो तथा-॥ १८१ ॥ अपिर छसट्ठि भागा, जोयग चउलक्ख विपत्तरि सहस्सा ॥ छच्च सया तेत्तीसा, तीस कला पंचगुणियंमि ॥१८२|| -( असिई ) के० एंशी योजन. अने ( छसढि भागा) के० साठीया छ भाग थाय, तथा ( पंचगुणियमि) के० पांच गुणा करिये त्यारे ( चउलक्ख ) के० चार लाख,
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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