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________________ १०४ ( बिसरि सहस्सा ) के० एक योजनना साठीया त्रीस भाग उपर थाय ।। १८२ ॥ सत्तगुणे छलक्खा, इगसडि सहस्स छसय छातीया ॥ चउपन्नकला तह नव, गुणंमि अडलक्ख सढाओ।॥१८३॥ ० अर्थ - ( सत्तगुणे ) के अंतर प्रमाणने सात गणुं करतां ( छलक्खा ) के० छे लाख, ( इगसट्ठि सहस्स ) के० एकसठ हजार अने (छसय ) छासीया) के० छ सो ने छयासी योजन तथा ( चउपन्नकला ) के० एक योजनना साठीया चोपन भाग थाय. ( तह ) के० तेमज ( नव गुणंमि ) के० अंतर प्रमाणने नव गणुं करोये त्यारे ( अडलक्ख सढाओ ) के० साडा आठ लाख, तथा ॥ १८३ ॥ सत्तसया चत्ताला अट्ठारस कला य इय कमा चउरो ॥ चंडा चवला जयणा, वेगा य तहा गई चउरो || १८४ ॥ १३ अर्थ - - ( सत्तसया चत्ताला ) के० सातसो चालीश योजन अने ( अट्ठारस कला य) के० एक थोजनना साठीया अढार भाग. ( इय) के० ए प्रमाणे (कमा) के० चालवानी गतिनो क्रम ( चउरो ) के० चार प्रकारनो छे. कारण के - ( चंडा चवला जयणा ) के० चंडा चवला यवना ( तहाय ) के० अने तेमज (वेगा ) के० वेगा ए नामनी ( गई चउरो ) के० चार गति छे. ए चारे गति एक एकथी वधारे उतावली छे ॥ १८४ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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