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स्थविरावली समाप्ता
[ कल्पान्तर्वाच्यः गुरु-पासे सुत्तत्थं पढियं तो वजसामि-गुरु-पासे । पढइ सो दिट्ठिवायं जणयाइ सुणिय-पव्वजं ।। ६७३॥ संदेसागारेइ जाहे नाऽऽगच्छइ तओ भाया। फग्गुरक्खिओ य पत्तो भणइ पवज्जइ सयण-वग्गो॥६७४ ॥ तो पढमं पवजसु तुमं तओ तेण दिक्खिओ सो य। अइगुरु-पढणे भग्गो बिंदूदहि-दिण्ण-दिटुंतो ।। ६७५ ॥ गुरुमापुच्छिय पत्तो पव्वाविओ माइ-पमुह-परिवारो। जणओ पुण मोहेणं भमइ पिट्ठीइ गिहि-वेसो।।६७६॥ बहुएहिं उवाएहिं दिक्खिओ सो धोय-छत्तयाइ-जुओ। मोयाविओ कमेण बालाइ-वयणुवाएणं॥६७७॥ धोइप-विमोक्खणट्ठा साहुंमि मए गुरूण सिक्खाए। वोढुं लग्गइ साहू किमित्थ लाहो य सो पुच्छइ ।। ६७८ ॥ गुरुणा आमं भणिए सो वहणत्यं समुट्ठिओ जाहे। सहियव्वो उवस्सग्गो इय गुरु-भणिए वि तं वहइ ॥६६॥ गच्छंतस्स य डिंभा कहंति य धोइयं च तो पच्छा। गाहाविओ मुणीहिं चोलपट्टो स-लज्जस्स ।।६८०॥ दिवो गुरुहिं पुढे कहियं तेणावि तो गुरू भणइ। आणेह धोइयं भो! सो भणइ गेण होयव्वं ॥६८१॥ जं दट्ठव् दटुं भिक्खं हिंडइ सो उवाएणं। गिहपिढे पविसंतो वारिओ सो य गिहवइणा॥६८२॥ न हु वारिजइ लच्छी आयंती जत्थ तत्थ सो तहो। बत्तीस-मोयगा तेण दिण्णा दंसेइ स-गुरूणं॥६८३॥ होहिस्संति य सीसा बत्तीसं अम्ह संतइए उ। इच्चाइ वित्थरत्थो नेयव्वो अण्ण-गंथाओ।।६८४॥
इति थेरावली-समत्ता..... एरावई कुणालाए, जत्थ चक्किया सिया, एगं पायं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवं चक्किया एवं णं कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं (भिक्खाचरियाए) गंतुं पडिनियत्तए॥ सामाचारी सूत्र-१२ ।।