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________________ विला...कारितः तथा च श्रीआसाकस्य मूर्त्तिरियं सुत उ० अरिसिंहेन कारिता प्रतिष्ठिता... संबंधे गच्छे पंचासरा विधि श्री शीलग(गुण-सूरिसन्ताने शिष्य श्री...देवचन्द्र-सूरिभिः ॥ मङ्गलं महा श्रीः ॥शुभं भवतु।।] ___[वनराजनी मूर्त्तिने शीलगुणसूरिनी मूर्ति हमणां पाटणमां पंचासरा पार्श्वनाथना मंदिरमां भमतीना भागमां एक नानी देरीमा मोजूद छे. वनराजनी मूर्त्तिनी नीचेना पथ्थरना भागमां ने तेनी आसपासना नीचेना बे पत्थर पर शिलालेख कोतरेल छे ते उकेलवो अने बेसाडवो बहु मुश्केल छे परंतु ते घणो उपयोगी छे तेथी पाटणमां विद्वान् मुनि महाराजश्री पुण्यविजयजीए ते पाछळ खूब महेनत लीधी अने हमणां ता. १८ मार्च १९३० ने दिने हुं पाटण हतो त्यारे पंडित लालचंद भ० गांधी अने मने ते मुनिश्री साथे लइ गया हता. पंडितजीए ते लेख उकेली बंध बेसडाववामां महेनत लीधी. अमे त्रणे पूरा निर्णय पर आवी शक्या नथी, परंतु ते लेख अति उपयोगी होई नीचे मूकवामां आवे छे. १ महा ( ) राजश्री षोनाल मं । महमद पातसाह पादप्रसादात् तत्प २ ट्ट (द?) कमलालंकार श्रीषोनाल म(मं)श्री पीरोजसाह प्रसादेन इयं मूर्त्तिरकृत्त (जन्न?) येऽस्तत् (?) आ बे लीटीनी समांतर 'संवत् ७५२ वर्ष का' अने 'क्षिप्रसरतस्य वनरा' - एम आगळना पथ्थरना भाग पर छे ते पंक्ति बेसती नथी. तेनो संबंध आ बे पंक्तिनी नीचेनी 'र्तिक...' अने 'जस्य...' साथे जणाय छे ने ते नीचे प्रमाणे: संवत् ७५२ वर्ष कार्तिक सुदि १५ गुरौ प्रहरैक समये पंचासर ग्रामे चाउडान्वये राज्ञी श्री सीतादेवी कु (१) क्षि प्रसरतस्य वनरा जस्य जन्म बभूव तदुपरि वृक्षछाया स्थिरा जाता वृक्षस्य शाखा झोलिका बद्धा तस्य प्रभावेण श्री... देवचंद्रसूरिशप्य (शिष्य) श्री शीलगुणसूरिभि । भट्टारकेन व्यावृत्त्य निश्चल वृक्षच्छायाविस्मयराजानि । महा प्रभावोयमिति ज्ञात्वा मातृसहित(:) स बाल स्वीकृतःxx चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना । 23
SR No.022638
Book TitleChandraprabh Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHitvardhanvijay
PublisherKusum Amrut Trust
Publication Year1930
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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