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________________ उत्तर : प्रमाद से जीव के द्रव्य प्राणों का विनाश करना या जीव-हिंसा करना प्राणातिपात अव्रताश्रव है। ६७६ ) मृषावाद अव्रताश्रव किसे कहते है ? उत्तर : स्वार्थ की सिद्धि के लिये अथवा अहित के लिये जो सत्य अथवा असत्य बोला जाता है, उसे मृषावाद अव्रताश्रव कहते है। ६७७) अदत्तादान अव्रताश्रव किसे कहते है ? उत्तर : अदत्त-नहीं दी हुई (वस्तु का), आदान-ग्रहण करना अदत्तादान है। निषेध की गई वस्तु अथवा बिना पूछे वस्तु को लेना, चोरी करना, अदत्तादान अव्रताश्रव कहलाता है। ६७८) अदत्तादान कितने प्रकार का है ? .... उत्तर : अदत्तादान ४ प्रकार का है - १. स्वामी अदत्त -स्वामी (मालिक) को पूछे बिना ली गयी वस्तु । २. जीव अदत्त - जीव को पूछे बिना ली गयी वस्तु । ३. तीर्थंकर अदत्त - तीर्थंकरों के द्वारा निषिद्ध की गयी वस्तु । ४. गुरु अदत्त - गुरु आज्ञा प्राप्त किये बिना ली गयी वस्तु । ६७९) अब्रह्म अव्रताश्रव किसे कहते है ? उत्तर : अनाचार का सेवन करना अब्रह्म आश्रव है। ६८०) परिग्रह अव्रताश्रव किसे कहते है ? उत्तर : पदार्थों का संग्रह करना, उन पर ममत्व बुद्धि रखना परिग्रह आश्रव है। ६८१) योगाश्रव किसे कहते है ? उत्तर : मन, वचन, काया के व्यापार से जो कर्म का आत्मा में आगमन होता है, उसे योगाश्रव कहते है। ६८२) योगाश्रव के तीनों भेद स्पष्ट करो । उत्तर : १. मनोयोग आश्रव : मन के द्वारा शुभ विचार करने पर शुभ मनोयोगाश्रव तथा अप्रशस्त विचार करने पर अशुभ मनोयोगाश्रव होता २. वचनयोगाश्रव : वचन से सत्य, मधुर तथा हितकारी वचन बोलने श्री नवतत्त्व प्रकरण २७५
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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