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________________ पर शुभ वचन योगाश्रव तथा असत्य, कटु व हिंसक वचन बोलने पर अशुभ वचनयोगाश्रव होता है। ३. काययोगाश्रव : काया से शुभ प्रवृत्ति करने पर शुभकाय योगाश्रव तथा अशुभ प्रवृत्ति करने पर अशुभ काययोगाश्रव होता है। ६८३) क्रिया किसे कहते है ? इसके कितने भेद हैं ? उत्तर : आत्मा जिस व्यापार के द्वारा शुभाशुभ कर्म को ग्रहण करती है, उसे क्रिया कहते है। इसके पच्चीस भेद हैं। ६८४) कायिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : अविरति, अजयणा या प्रमादपूर्वक शरीर के हलन-चलन की क्रिया कायिकी क्रिया कहलाती है। ६८५) कायिकी क्रिया के कितने भेद होते हैं ? नाम सहित परिभाषा लिखो। उत्तर : कायिकी क्रिया के दो भेद होते हैं - (१) अनुपरत कायिकी क्रिया - विरति रहित जीवों की सावधक्रिया। (२) दुष्प्रयुक्त कायिकी क्रिया - मन-वचन-काया की अशुभ क्रिया। ६८६) अधिकरणिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : अधिकरण अर्थात् तलवार, चाकू, छूरी, बंदूक, आदि । इन शस्त्रों (अधिकरण) से आत्मा पाप करके नरक का अधिकारी बनता है, इन शस्त्रों से होने वाली क्रिया को अधिकरणिकी क्रिया कहते है । ६८७) अधिकरणिकी क्रिया के भेद लिखो । उत्तर : अधिकरणिकी क्रिया के दो भेद - (१) संयोजनाधिकरणिकी क्रिया - शस्त्रादि के अवयवों को परस्पर जोडना। (२) निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया - नये शस्त्रादि का निर्माण करना । ६८८) प्राद्वेषिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : जीव या अजीव पर द्वेष करने से लगने वाली क्रिया प्राद्वेषिकी क्रिया ६८९) प्राद्वेषिकी क्रिया के भेद लिखो । ------ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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