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________________ उत्तर : १) मद्य, २) विषय, ३) कषाय, ४) निद्रा, ५) विकथा । ६६७) कषाय किसे कहते है ? उत्तर : जो आत्मा का संसार बढाये, उसे कषाय कहते है । इसका विस्तृत वर्णन पाप तत्त्व में किया जा चुका है I ६६८ ) योग किसे कहते है ? उत्तर : मन, वचन तथा काया के शुभाशुभ व्यापार को योग कहते है । ६६९) शुभ योग किसे कहते है ? उत्तर : मन-वचन-काया का शुभ कार्य में प्रवृत्त होना शुभयोग है । ६७० ) अशुभ योग किसे कहते है ? उत्तर : मन-वचन-काया का अशुभ कार्य में प्रवृत्त होना अशुभ योग है । ६७१ ) किन-किन कारणों से आत्मा में आश्रव होता है तथा आश्रव के भेद कितने हैं ? उत्तर : आश्रव के ४२ भेद है । इन ४२ द्वारों से आत्मा में कर्म का आगमन होता है - - इन्द्रियाँ – ५, कषाय – १६, अव्रत - ५, योग - ३, क्रियाएं - २५ - - ६७२ ) इन्द्रियाश्रव किसे कहते है ? उत्तर : ५ इन्द्रियों के २३ विषय आत्मा के अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने पर सुख-दुःख का अनुभव होता है, उससे आत्मा में कर्म का जो आश्रव होता है, उसे इन्द्रियाश्रव कहते है । २३ विषयों का वर्णन अजीव तत्त्व में देखे | ६७३ ) कषायाश्रव किसे कहते है ? उत्तर : क्रोधादि ४ कषायों के अनंतानुबन्धी क्रोधादि आदि १६ भेदों से आत्मा में जो कर्म का आगमन होता है, उसे कषायाश्रव कहते है । ६७४) अव्रताश्रव किसे कहते है ? उत्तर : प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन तथा परिग्रह, इन पांच व्रतों का देशतः या सर्वतः अनियम या अत्याग अवताश्रव कहलाता है ६७५ ) प्राणातिपात अव्रताश्रव किसे कहते है ? 1 २७४ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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