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६.शम
ज्ञानीजनों को शान्ति ही होती है। निर्मोही-अमोही ऐसी आत्मा को नहीं होते हैं विषय-विकार और नहीं होते हैं विकल्प । उसे इनसे कोई मतलब नहीं होता । ज्यादा समय आत्मा की स्वभावदशा में तल्लीन रहनेवाले जीवात्मा को ज्ञान का सही फल मिल जाता है ।
कर्मजन्य विषमता ज्ञानीजनों के ध्यान में कभी नहीं आती है। उन्हें समस्त जीवसृष्टि प्रायः ब्रह्मरुप में ही दिखती है । ऐसी सभी आत्माएं निरन्तर शमरस का अमृतपान कर कृतार्थ होती हैं ।
___ आइए, शम और प्रशम के वास्तविक मूल्यांकन और उसके प्रभाव से परिचित हो जायें । यकीन कीजिए, इससे जीवनमार्ग को एक नयी दिशा मिलेगी, अपने आप को जानने की और उसके प्रभाव को समझने की !
विकल्पविषयोत्तीर्णः, स्वभावालम्बनः सदा । ज्ञानस्य परिपाको यः, स शमः परिकीर्तितः ॥६॥१॥
अर्थ : विषय-विकल्प से रहित और निरन्तर शुद्ध स्वभावदशा का आलम्बन लेनेवाली आत्मा का ज्ञानपरिणाम ही स्वभाव है।
विवेचन : कोई विकल्प नहीं ! जैसे कि अशुभ विकल्प नहीं-'मैं धनवान बनूँ, मैं सर्वोच्च सत्ता का स्वामी बनूँ, सर्वशक्तिमान बनूँ... ।' ठीक उसी तरह 'मैं दान ढूँ, तपस्या करूँ, मन्दिर-उपाश्रयों का निर्माण कराऊँ, आदि विकल्प भी नहीं । सिर्फ एक ध्येय ! वह है आत्मा के अनन्त, असीम सौन्दर्य में ही अहनिश रत रहने का, आकण्ठ डूबे रहने का ।