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________________ ज्ञान ७ रसायन-शास्त्रियों का मत है कि रसायन औषधिजनित होता है। राजा-महाराजाओं की मान्यता है कि ऐश्वर्य हाथी-घोडे और सोना-चांदी आदि संपदा में समाया हुआ है। जबकि ज्ञानी पुरुषों का कहना है कि, "ज्ञान 'अमृत' होते हुए भी समुद्रमंथन से नहीं निकला, रसायन होते हुए भी औषधि-जन्य नहीं और ऐश्वर्य होते हुए भी हाथी-घोडे अथवा सोने-चांदी की अपेक्षा नहीं रखता ।" समुद्र-मंथन से प्रकट अमृत, मानव को मृत्यु से बचा नहीं सकता । लेकिन ज्ञानामृत उसे अजरामर बनाता है । औषधिजन्य रसायन उसे शारीरिक व्याधियों तथा वृद्धावस्था से सुरक्षित रखने में असमर्थ है, जबकि ज्ञान-रसायन से वह अनंत यौवन का अधिपति बनता है । सोने चांदी और हाथी-घोडेवाला ऐश्वर्य, जीवात्मा को निर्भय / निर्धान्त बनाने की शक्ति नहीं रखता, लेकिन ज्ञान का ऐश्वर्य उसके जीवन में सदैव अक्षय शान्ति, परम आनन्द और असीम निर्भयता भर देता है। तब भला क्यों भौतिक अमृत, रसायन एवं ऐश्वर्य की स्पृहा करें ? नाहक उसके पीछे दीवाने बन, तन-मन-धन की शक्तियाँ क्यों नष्ट करें ? व्यर्थ में ही क्यों ईर्ष्या, मोह, रोष, मत्सर, मूर्छादि पापों का अर्जन करें ? क्या कारण है कि उसके खातिर अन्य जीवों से शत्रुता मोल लें ? अमूल्य ऐसे मानव जीवन को क्यों नेस्तनाबुद करें ? क्योंकि यह जीवन ज्ञानामृत, ज्ञान-रसायण और ज्ञान ऐश्वर्य की प्राप्ति से उन्नत बनाने के लिए है। हमें सदा सर्वदा इसकी ही स्पृहा करनी चाहिए । इसे प्राप्त करने हेतु तन-मन-धन की समस्त शक्तियों का उपयोग करना चाहिये । इस तरह का भावनाज्ञान आत्मा में से प्रकट होता है और उसे प्रकट करने के साधन हैं-देव, गुरु और धर्म की आराधना । देव-गुरु-धर्म की उपासना से ही आत्मा में से ज्ञान-अमृत, ज्ञान-रसायण और ज्ञान-ऐश्वर्य की ज्योति प्रज्वलित होती है । फलतः जीवात्मा को परम तृप्ति का अद्भुत आनन्द मिलता है। वह उत्तम आरोग्य की अधिकारी बनती है और परम शोभा को धारण करती है।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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