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________________ परिशिष्ट : गोचरी के ४२ दोष ५७७ (२०) आजीवक पिंड : अपने आचार्य का कुल बताना । (२१) वनीपक पिंड : ब्राह्मण, अतिथि, भिखारी के समान बनकर भिक्षा माँगे । (२२) चिकित्सा पिंड : दवा बताये या करे । (२३) क्रोध पिंड : क्रोध से भिक्षा मांगे । (२४) मान पिंड : अभिमान से भिक्षा लाये । (२५) माया पिंड : नये नये वेश करके लाये । (२६) लोभ पिंड : कोई खास वस्तु लाने की इच्छा से फिरे । (२७) संस्तवदोष : माता, पिता और ससुराल का परिचय दें । (२८) विद्या पिंड : विद्या से भिक्षा लाये । (२९) मन्त्र पिंड : मन्त्र से भिक्षा लाये । (३०) चूर्ण पिंड : चूर्ण से भिक्षा लाये । (३१) योग पिंड : योगशक्ति से भिक्षा प्राप्त करे । (३२) मूल कर्म : गर्भपात करने के उपाय बताये । (३३) शंकित : दोष की शंका हो तो भी भिक्षा लें । (३४) भ्रक्षित : काम में लिया हुआ जूठा द्रव्य लें । (३५) पीहित : सचित या अचित से ढकी हुई वस्तु लें । (३६) दायक : नीचे लिखे लोगों से भिक्षा लेने से यह दोष लगता है । (१) बेडी से जकड़ा हुआ (२) जूते पहने हुए (३) बुखारवाला (४) बालक (५) कुबड़ा (६) वृद्ध (७) अन्धा (८) नपुंसक (९) उन्मत्त (१०) लंगड़ा (११) खांडनेवाला (१२) पीसनेवाला (१३) धुनकनेवाला (१४) कातनेवाला (१५) दही बिलोनेवाला (१६) गर्भवती स्त्री (१७) दूध पीते बच्चे की माँ (१८) मालिक की अनुपस्थिति में नोकर (३७) उन्मिश्र : सचित्त-अचित्त मिलाकर देवे वह लेना । (३८) अपरिणत : पूर्ण अचित्त न हुआ हो वह लेना अथवा दो साधु में एक को निर्दोष लगे और दूसरे को सदोष लगे वह लेना । (३९) लिप्त : शहद, दही से लिपा हुआ लेना ।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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