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________________ ५७६ ज्ञानसार दोष लगता है, उसका उन्हें प्रायश्चित करना पड़ता है। महाव्रतों को सुरक्षित रखने के लिए इन दोषों से बचना पड़ता है । ४२ दोषों को टालने के लिए इन दोषों का ज्ञान आवश्यक है। यहाँ इन दोषों के नाम और उनकी संक्षिप्त जानकारी दी गई है। विस्तृत ज्ञान के जिज्ञासुओं को 'प्रवचन सारोद्धार' 'ओधनियुक्ति' 'पिंडनियुक्ति' आदि ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। (१) आधाकर्म : साधु के लिए बनाए हुआ अन्न पानी । (२) औदेशिक : विचरण करते हुए साधु संन्यासियों के लिए बनाया हुआ। (३) पूतिकर्म : आधाकर्म से मिश्र । (४) मिश्रजात : ज्यादा बनाये । (५) स्थापना : अलग निकालकर रखे । (६) प्राभृतिक : लग्न आदि प्रसंगों में साधु के निमित्त देर से या पहले करे। इसी तरह सुबह या शाम को साधु के निमित्त देर से या जल्दी भोजन बनावे । । (७) प्रादुष्करण : खिड़की खोले; बत्ती करे। . (८) क्रीत : साधु के लिए खरीदकर लाये । (९) प्रामित्य : साधु के लिए उधार लाये । (१०) परावर्तित : अदल बदल करे । (११) अभ्याहृत : साधु के स्थान पर लाकर देना । (१२) उद्भिन्न : सील तोड़कर या ढक्कन खोलकर दे । (१३) मालापहृत : छींके में रखा हुआ उतारकर दे । (१४) आच्छेद्य : पुत्र आदि की इच्छा न हो तो भी उनके पास से लेकर (१५) अनुत्सृस्ट : अनुमति बिना (पति पत्नी की, पत्नी पति की) देवें। (१६) अध्वपूरक : भोजन पकाने की शुरूआत अपने लिए करे फिर इसमें साधु के लिए और बढ़ा देवें । (१७) धात्रीदोष : साधु धाय मां का काम करे । (१८) दूतिदोष : संदेश ले जाना और लाना । (१९) निमित्त कर्म : ज्योतिष शास्त्र से निमित्त कहे ।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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