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________________ ५७८ बोहराना । (४०) छर्दित : भूमि पर गिरा हुआ - लेना । ( ४१ ) निक्षिप्त: सचित्त के साथ संघट्टावाला लेना । (४२) संहृत: एक बर्तन से दूसरे बर्तन में खाली करके, खाली बर्तन से साधु साध्वी को इन ४२ दोषों की जानकारी होनी ही चाहिए। तभी वे भिक्षा लाने के योग्य बन सकते हैं । ज्ञानसार २७. चार निक्षेप किसी भी शब्द का अर्थ निरुपण करना हो तो वह 'निक्षेप' पूर्वक किया जाये तो स्पष्ट रूप से समझ में आ सकता है । 'निक्षेपणं निक्षेप:' निरुपण करने को निक्षेप कहते हैं । यह निक्षेप जघन्य से चार प्रकार का है और उत्कृष्ट से अनेक प्रकार का है । यहाँ हम चार प्रकार के निक्षेप का विवेचन करेंगे । (१) नाम । (२) स्थापना । (३) द्रव्य । (४) भाव । नाम निक्षेप : यद् वस्तुनोऽभिधानं स्थितमन्यार्थे तदर्थ निरपेक्षम् । पर्यायानभिधेयं च नाम यादृच्छिकं च तथा ॥ (१) यथार्थ में एक नाम सर्वत्र बहुत प्रसिद्ध होता है और वही नाम दूसरे लोग भी रखते हैं । उदाहरणार्थ 'इन्द्र' यह नाम देवों के अधिपति के रुप में प्रसिद्ध है और यह नाम ग्वाले के लड़के का भी रख देते हैं । I (२) 'इन्द्र' शब्द का जो 'परम ऐश्वर्यवान्' अर्थ है वह ग्वाले के लड़के के लिए प्रयुक्त नहीं होगा । (३) 'इन्द्र' शब्द के जो पर्याय 'शक्र', 'पुरन्दर', 'शचि - पति' आदि हैं वे पर्याय ग्वाले के पुत्र इन्द्र के लिये प्रयुक्त नहीं होंगे । १. अनुयोग द्वार - सूत्र
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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