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ज्ञानसार
- कुल बत्तीस अष्टक और बत्तीस ही विषय !
- विषयों का क्रमशः संयोजन किया गया है । संयोजन में संकलन है ! संयोजन में साधना का मार्गदर्शन है । इन चार श्लोकों में बत्तीस विषयों की नामावली दी गयी है ! ग्रन्थकार ने गुर्जर-टीका (टबा) में सोद्देश्य क्रम समझाने का प्रयत्न किया है।
★ पहला अष्टक है पूर्णता का ।
लक्ष्य बिना की प्रवृत्ति की कोई कीमत नहीं होती । अतः पहले अष्टक में ही पूर्णता का लक्ष्य प्रदर्शित किया है ! आत्म-गुणों की पूर्णता का लक्ष्य समझाया है । जो जीव इस लक्ष्य से 'मुझे आत्म-गुणों की पूर्णता हासिल करनी ही है ।' ऐसा दृढ संकल्प करे तो वह ज्ञान में निमग्न हो सकता है, अतः
★ दूसरा अष्टक है मग्नता का ।
ज्ञान में निमग्न ! परब्रह्म में लीन ! आत्मज्ञान में ही मग्नता ! ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर ही जीव की चंचलता-अस्थिरता दूर होती है और वह स्थिर बनता है । अतः मग्नता के पश्चात्
* तीसरा अष्टक है स्थिरता का ।
मन-वचन-काया की स्थिरता । सबसे पहले मानसिक स्थिरता प्राप्त करना आवश्यक है ! तभी क्रिया-औषधि का उपयोग है ! स्थिरता का रत्नदीया प्रज्वलित करते ही मोह-वासनाएँ क्षीण हो सकती हैं ! इसलिए
* चौथा अष्टक है निर्मोह का ! - मोहराजा का एकमेव मन्त्र है 'अहं' और 'मम्' ! मन्त्र-जाप से चढे मोह के विष को 'नाहं' 'न मम्' के प्रतिपक्षी मन्त्र-जाप से उतारने का उपदेश दिया गया है। इस तरह मोह का जहर उतरने पर ही ज्ञानी बन सकते हैं, उसके लिए
★ पाँचवा अष्टक है ज्ञान का।
ज्ञान की परिणति होना आवश्यक है। ज्ञान-प्रकाश प्राप्त होना चाहिए ! ज्ञान का अमृत, ज्ञान का ही रसायन और ज्ञान-ऐश्वर्य प्राप्त होना चाहिये ! तभी