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ज्ञानसार
हैं । अतः जीवन का एकमात्र लक्ष्य पूर्णानन्दी बनने का बना, दिशा-परिवर्तन कर अपने लक्ष्य की ओर गतिमान होना चाहिए । विचारों में सर्वनयदृष्टि का आविर्भाव हो जाए, बस ! परमानन्द की शीतल धारा हमारे आत्म-प्रदेश को प्लावित कर देगी और रोग-शोक की बंजर भूमि हरियाली से लद जाएगी।
___'ज्ञानसार' ग्रन्थ के ३२ अष्टकों में से प्रस्तुत अन्तिम श्लोकों में एकान्तदृष्टि का परित्याग कर अनेकान्त दृष्टि अपनाने की सीख दी गयी है। किसी प्रकार के वाद-विवाद और वितंडावाद के झंझट में फँसे बिना, संवादी धर्मवाद का आश्रय ग्रहण करने का उपदेश दिया गया है। परमानन्द का यही परम पथ है। पूर्णानन्दी बनने का यही एकमेव अद्भुत उपाय है । आत्मा को परम शान्ति प्रदान करने का यही एक राजमार्ग है ।
परमानन्दी सदा-सर्वदा जयवन्त हों !