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तप
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रूप से उसकी आवृत्ति करे । साथ ही उस पर अनुप्रेक्षा (चिंतन-मनन) करता रहे और चिंतन-मनन से स्पष्ट हुए पदार्थों का अन्य जीवों को उपदेश दे । सदैव उसका मन स्वाध्याय में खोया रहे !
इस तरह गुणों के विशाल साम्राज्य की प्राप्ति के लिये मुनीश्वर बाह्यआभ्यन्तर १२ प्रकार के तप की आराधना में नित्यप्रति उद्यमशील बना रहे । कर्मों के अटूट बन्धनों को तोडने के लिए कटिबद्ध बना महामुनि अपने जीवन को ही तपश्चर्या के अधीन कर दे । तप के व्यापक स्वरूप की आराधना ही उसका एकमेव जीवन-ध्येय बन जाए।
उन्मत्त वृत्तियों के शमन हेतु और उत्कृष्ट वृत्तिओं को जागृत करने के लिए तप, त्याग एवं तितिक्षा का मार्ग ही जीवन का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। आराधनाउपासना का श्रेष्ठतम मार्ग है।