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________________ ४७२ ज्ञानसार अदत्तादान-विरमण महाव्रत, मैथुन-विरमण महाव्रत और परिग्रह विरमण महाव्रत । और उत्तरगुण है : पाँच समिति एवं तीन गुप्ति । दस प्रकर का श्रमणधर्म और बारह प्रकार का तप ! संक्षेप में यह कहना उपयुक्त होगा की सिद्धि के लिये वह तपश्चर्या करता है । बाह्य तप और आभ्यन्तर तप करता है । वह छट्ठ-अठ्ठम-अट्ठाई और मासक्षमण जैसा अनशन तप करता है। जब आहार-ग्रहण करे तब क्षुधा (भूख) से कम ग्रहण करे । जहाँ तक सम्भव हो कम से कम द्रव्यों का उपयोग करे । सरस व्यंजनों का परित्याग करें । काया को कष्ट दे अर्थात् उग्रविहार करे ! ग्रीष्मकाल में मध्याह्न के समय सूर्य की ओर निनिमेष दृष्टि लगाकर आतापना करे ! शरदऋतु में वस्त्रहीन हो कड़ाके की सर्दी में ध्यानस्थ रहे ! एक ही स्थानपर निश्चल बन घंटों तक बैठकर ध्यानादि क्रिया करे ! किंचित् भी हलन-चलन न हो, मानों साक्षात् पाषाणमूर्ति ! ___छोटी या बड़ी कोई भूल हो जाए, संयम को किसी प्रकार का अतिचार लग जाए कि वह तुरंत प्रायश्चित करे ! परमेष्ठी भगवन्तो का... ओंकार का ध्यान धरे। कोई गुरुजन हो, बालमुनि हो अथवा ग्लानमुनि हो, उनकी सेवा-सुश्रूषा और भक्ति में सदा तत्पर बना रहे । ऐसा कोई सेवा का अवसर हाथ से न जाने दें! लाख काम हों, विविध प्रकार की व्यस्तता से घिरा हो, फिर भी उसे एक ओर रख, सेवा वैयावच्च के कार्य में अविलम्ब जूड जाए । ग्लानमुनि की सेवा को वह परमात्मा की सेवा समझे ! विनय और विवेक तो उसके प्राण हो ! आचार्यउपाध्यादि का मान-सन्मान करें, उनके प्रति विनीत-भाव अपने हृदय में संजोये रखे । अतिथि से अदब और विनय से पेश आए । उसका समस्त कार्यकलाप विनयभाव से सुशोभित हो । उसमें मृदुता का ऐसा पुट हो कि जिससे मिथ्याभिमान स्पर्श तक न कर सके। रात्रि के समय.... निद्रा का त्याग कर निरंतर कायोत्सर्ग में निमग्न रहे। ध्यानस्थ मुद्रा में षड्द्रव्यों का चिंतन करे और दिन-रात के आठ प्रहर में पाँच प्रहर (२४ घंटों में से १५ घंटे) स्वाध्याय में रत रहे ! गुरुदेव के सान्निध्य एवं मार्गदर्शन में शास्त्राभ्यास करे, उस पर चिंतन मनन करे और शंका-कुशंकाओं का समाधान प्राप्त करे । पठन किया हुआ विस्मरण न हो जाए, अतः नियमित
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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