________________
ध्यान
४५७
ऐसे ध्यानी नरपुंगव को भला, किस उपमा से अलंकृत किया जाए ? उसके लिए देवलोक में कोई उपमा नहीं है, ना ही मृत्युलोक में । ऐसी कोई पूर्णोपमा उपलब्ध नहीं त्रिभुवन में, जिसका उपयोग ध्यानी-ज्ञानी महापुरुष के लिए उपयुक्त हों ।
घ्याता, ध्यान और ध्येय की एकता साधनेवाला योगी चर्मचक्षुओं से दृष्टिगोचर नहीं होता, ना ही परखा जाता है। ऐसे महान् ध्याता महात्मा, अन्तरंग आनन्द का अनुभव करते हैं। ऐसी उच्चतम श्रेणि प्राप्त करने के लिए जीवात्मा को ऊपर निदिष्ट विशेषताओं का सम्पादन करना आवश्यक है।
___ध्याता बनने के लिए यह एक प्रकार की आचार-संहिता ही है । ऐसा ध्याता ही ध्येय प्राप्त करने का सुयोग्य अधिकारी बन सकता है।
हे आत्मन् ! तू ऐसा सर्वोत्तम ध्याता बन जा । प्रस्तुत पार्थिव जगत से सदा-सर्वदा के लिए अलिप्त हो जा। ध्येयरूप परमात्म स्वरूप का अनन्य पूजारी, पूजक बन जा ! इतना ही नहीं, बल्कि इसका ही प्रेमी बन जा । अपने जीवन के हर पल को तू इसमें ही लगा दे ! ध्येय में ध्यान से निमग्न हो जा और अनुभव कर ले इस अपूर्व आनन्द का !