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मग्नता
विवेचन : एक नजर देखो तो, उनकी दृष्टि से करुणा की धारा बह रही है ! सिर्फ करुणा...... सदैव करुणा ! समस्त भूमण्डल पर करुणा की वर्षा हो रही है । 'समस्त जीवात्माओं के दुःख दूर हों, सभी जीवों के कर्म-क्लेश मिट जाएँ ।'
जानते हो यह वर्षा किस बादल में से हो रही है ? यह ज्ञान-ध्यान की मग्नता का बादल है । इसमें से करुणा की अविरत धारा बह रही है । कैसा यह अपूर्व बादल और कैसी अनुपम वर्षा ! जो कोई इसमें स्नान करेगा, नहायेगा, क्षणार्ध में उसके तन मन के सारे संताप, क्लेश और दर्द दूर हो जाएंगे । मन का मैल और तन का ताप मिट जाएगा ।
उनकी वाणी कैसी मधुर, मंजुल और मीठी है ? मानो अमृत ! जो कोई इसका श्रवण-मनन करेगा, उसके क्रोध, मान, माया और लोभ के उन्माद । विक्षिप्तता आनन-फानन में मिट जाएगी और उपशम रस का स्रोत फूट पड़ेगा। उनकी वाणी से रोष, कोप और मोह का लावारस नहीं बहेगा, ना ही कभी सांसारिक सुखों की लालसा के प्रलाप / बकवास सुनायी देंगे । जब भी सुनोगे, आत्महित की चर्चा ही कानों से टकराएगी और वह भी शहद-सी स्वादिष्ट, एकदम मीठी। . ऐसे महान धुरंधर योगीराज को हम तन-मन से नस्कार करें । भक्तिभावपूर्वक उनके चरणों में वन्दन करें। इसके लिये उनके सन्मुख खड़े रहें । उनकी असीम कृपा के पात्र बनें ! उनकी वाणी श्रवण करने के अधिकारी बनें।
साधक जीवात्मा को यहाँ पर महत्त्वपूर्ण दो बातों का साक्षात्कार होता है । जैसे-जैसे ज्ञान-ध्यानादि प्रक्रिया में उसकी मग्नता / लीन अवस्था में वृद्धि होती रहती है, उसी अनुपात में उसकी दृष्टि और वाणी में यथोचित परिवर्तन होना परमावश्यक है। करुणा-दृष्टि से विश्व का अवलोकन करना चाहिए और प्राणिमात्र के साथ उपशमरस-भरपूर वाणी से व्यवहार करना चाहिए । इसके लिये जगत के प्राणियों के प्रति जो दोषदृष्टि है, उसके बजाय गुण-दृष्टि का आविष्कार करना आवश्यक है । क्योंकि ज्ञान-ध्यानादि की मग्नता / लीनता में से ही गुणदृष्टि प्रगट होती है और गुण-दृष्टि के कारण ही समस्त जीवों के साथ के संबन्ध प्रशस्त और मधुर बनते हैं।