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________________ २२ ज्ञानसार निवास कर आर्य स्थूलिभद्र ने कामविजेता बनकर सारे संसार को आश्चर्य चकित कर दिया । भला उसके पीछे कौन सी शक्ति / तत्त्व काम कर रहा था ? सिर्फ ज्ञानामृत की एक बूंद । पूर्णानन्द की एकमात्र बूंद । निर्दोष-निष्पाप मदनब्रह्म मुनिराज को पकडकर और गुड्ढे में फेंक कर क्रूर राजा ने ठंडे कलेजे से उनका शिरच्छेद कर धरती को खून से रंग दिया। लेकिन धीर - गम्भीर मुनिराज ने क्रोध पर विजय पाकर आत्मस्वरूप की पूर्णता प्राप्त कर ली । उसके पीछे कौन सा परम रहस्य काम कर रहा था ? वही ज्ञानामृत की एक बूंद ! पूर्णानन्द की एकमात्र बूंद ! राजसी ऋद्धि-सिद्धियों का त्याग कर राजकुमार से मुनिराज बने ललितांग के आहार पात्र में चार तपस्वी मुनिराजों ने थूक दिया । फिर भी करुणावतार, दयासागर ललितांग मुनि के हृदय - मन्दिर में उपशम रस की बांसुरी बजती ही रही। फलतः वे शिवपुरी के स्वामी बने । सोचो, जरा उस उपशम-रसभीनी बांसुरी के मधुरसुर छोडनेवाला कौन था ? वही ज्ञानामृत की एक बूंद ! पूर्णानन्द की एकमात्र बूंद । ऐसी अगणित आख्यायिकाओं का सर्जन कर ज्ञान-बिंदुओ ने अनादिकाल से इस धरती पर उपशमरस का झरना निरन्तर प्रवाहित रखा है और उसमें प्लावित होकर असंख्य आत्माओं ने अपनी संतप्त अन्तरात्माओं को प्रशान्त किया है । ज्ञानामृत में सर्वांग / सम्पूर्ण स्नान करनेवाले महापुरुषों की स्तुति भला किन शब्दों में की जाए ? यह सब शब्द से परे है। बल्कि इन्हें आँखे मूँदकर अन्तर्मन से देखते ही रहें । सिर्फ़ देखकर अनुभव करने से विशेष हम कुछ नहीं कर सकते । यस्य दृष्टिः कृपावृष्टिर्गिरः शमसुधाकिरः । तस्मै नमः शुभज्ञानध्यानमग्नाय योगिने ॥ २॥८ ॥ अर्थ : जिनकी दृष्टि कृपा की वृष्टि है और जिन की वाणी उपशमरूपी अमृत का छिड़काव करनेवाली है, उन प्रशस्त - ज्ञानध्यान में सदा-सर्वदा लीन रहनेवाले महान योगीश्वर को नमस्कार हो ।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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