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________________ ४४० ज्ञानसार करने की प्रेरणा है । आत्ममस्ती और ब्रह्म-रमणता की ये अनोखी बातें हैं । यहाँ परम पूज्य उपाध्यायजी महाराज पूजन के स्थूल साधनों के आधार से मोक्षार्थी का सर्वोत्तम मार्गदर्शन कर रहे हैं । अलसन्मनसः सत्यघण्टां वादयतस्त्व । भावपूजारतस्येत्थं, करकोडे महोदयः ॥२९॥७॥ अर्थ : उल्लसित मनवाला सत्य रुपी घंट बजाता और भावपूजा में तल्लीन, ऐसे तेरी हथेली में ही मोक्ष है। विवेचन : भक्ति और श्रद्धा का केशर घोलकर आतम देव की नवांगी पूजा की, क्षमा की पुष्पमाला गूंथकर उनके अंग सुशोभित किये, निश्चय और व्यवहार के बहुमूल्य, सुन्दर वस्त्र परिधान करवा कर उन्हें सजाया और ध्यान के अलंकारों से उस देव को देदीप्यमान बनाया । आठ मद के परित्याग रुप अष्ट मंगल का आलेखन किया । ज्ञानाग्नि में शुभ संकल्पों का कृष्णागरू धूप डाल कर आतमदेव के मन्दिर को मृदु सौरभ से सुगंधित कर दिया... । धर्म-सन्यास की अग्नि से लवण उतारा और सामर्थ्य योग की आरती की। उनके समक्ष अनुभव का मंगलदीप प्रस्थापित कर धारणा, ध्यान और समाधि स्वरुप गीत, नृत्य एवं वाद्य का अनोखा ठाठ जमाया । मन के उल्लास की अवधि न रही... मानसिक मस्ती ने... मन्दिर में लटकते विराटकाय घंट को बजाया... और सारा मन्दिर घंटनाद से गूंज उठा... सारा नगर गूंज उठा। घंटनाद की ध्वनि ने विश्व को विस्मित कर दिया । देवलोक के देव और महेन्द्रों के आसन तक हिल उठे । 'यह क्या है ? कैसी ध्वनि है? यह कैसा घंटनाद ?" अबधिज्ञान से देखा। ___ ओहो ! यह तो सत्य की ध्वनि ! परम सत्य का गुंजारव ! अवश्य आतमदेव के मन्दिर में सत्य का साक्षात्कार हुआ है-उसकी यह प्रति-ध्वनि है। आतमदेव आतम पर प्रसन्न हो उठे हैं। पूजन-अर्चन का सत्यं फल प्राप्त हो गया है । उसकी खुशी का यह घटनाद है। चराचर विश्व में सत्य सिर्फ एक ही है और परमार्थ भी एक ही है और
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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