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________________ योग को दुःखपूर्ण महसूस करता है । अलबत्त, वैषयिक सुखों से सर्वथा विरक्त बना, शास्त्रदृष्टियुक्त साधक, उसमें से भी ऐसा मार्ग खोज निकालता है कि जिस पर विचरण करते हुए सरलता से परम सुख प्राप्त कर सके । मार्ग में आनेवाली मुश्केलियाँ और कठिनाईयाँ व भय उसके मन तुच्छ होते हैं। उसके मन में निरन्तर उमड़ रहा सत्वभाव विघ्नों को कुचल कर प्रगति के पथ पर अग्रसर करता है । ३९९ • मोक्ष और संसार को जोड़नेवाला मार्ग है- योगमार्ग 'मोक्षेण योजनाद् योगः ' मोक्ष के साथ आत्मा का जो सम्बन्ध कराता है, उसे योग कहते हैं । जिस मार्ग का अवलम्बन कर आत्मा मोक्ष- मँजिल पर पहुँच जाए, वह योग- मार्ग कहलाता है । 'योगविंशिका' ग्रन्थ में आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने कहा है'मुक्खेण जोयणाओ जोगो सब्बो वि धम्मवावारो ।' 'मोक्ष के साथ जोड़नेवाला होने के कारण समस्त धर्म - व्यापार योग है । ' मोक्ष के कारणभूत जीव का पुरुषार्थ यानी योग। लेकिन यहाँ विशेष रूप से पाँच प्रकार के योग का वर्णन किया गया है * (१) स्थान, (२) वर्ण, (३) अर्थ, (४) आलम्बन, (५) एकाग्रता | (१) सकल शास्त्र - प्रसिद्ध कायोत्सर्ग, पर्यकबन्ध, पद्मासन आदि आसन, यह स्थान - योग है । (२) धर्मक्रिया में प्रयुक्त शब्द, यह वर्णयोग है । (३) शब्दाभिधेय का व्यवसाय, यह अर्थयोग है I (४) बाह्य प्रतिमादि विषयक ध्यान, यह आलम्बन योग है । (५) रूपी द्रव्य के आलम्बन से रहित निर्विकल्प चिन्मात्र समाधि, यह एकाग्रता - योग है । ★ देखिए परिशिष्ट में 'समाधि'
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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