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ज्ञानसार
बुद्धि से समझ में न आ सकें ऐसा कोई तत्त्व क्या इस अनंत विश्व में है ही नहीं ? क्या इस धरती पर ऐसी कोई समस्या विद्यमान नहीं, जो बुद्धि से सुलझ नसकी हो ? कोई प्रश्न नहीं है ? जबकि सच्चाई यह है कि आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के समक्ष ऐसी कई समस्याएँ हैं, जिसका हल / निराकरण बुद्धि अथवा तर्क के बल पर करने में असमर्थ हैं !
सम्भवतः तुम यह कहोगे : " जैसे बुद्धि का विकास होता जाएगा, समस्याओं का निराकरण भी होता रहेगा ।"
बुद्धि अपने आप में कभी परिपूर्ण नहीं होती । वह अपूर्ण ही होती है । अतः पूर्ण चैतन्य के साक्षात्कार के बिना अथवा उस पर श्रद्धा प्रस्थापित किये बिना, किसी समस्या का हल असम्भव है ।
आकाश से उस पार के संशोधन - अन्वेषण में रत विज्ञान, पृथ्वी पर रहे मानव-प्राणी की समस्याएँ हल करने में असमर्थ सिद्ध हुआ है । वह अनाज, आवास और रोटी-रोजी का प्रश्न हल नहीं कर सका है और मानसिक अशान्ति दूर नहीं कर सका है । फिर भी विज्ञान की परिपूर्णता का गीत गाता अर्धदग्ध मानव उसकी सर्वोपरिता पर अन्धश्रद्धा रख, मुस्ताक है। बुद्धि का दुराग्रह जब मनुष्य को अतीन्द्रिय पदार्थों के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करने देता तब उसके साक्षात्कार की बात ही कहाँ रही ?
आत्मा-परमात्मा इन्द्रियातीत तत्त्व हैं ! हालाँकि तर्क एवं बुद्धि से उसका अस्तित्व सिद्ध है, फिर भी वह इन्द्रियों से प्रत्यक्ष में अनुभव न किया जाए ऐसा तत्त्व है। इस का अनुभव करने के लिए इन्द्रियातीत शक्ति और सामर्थ्य होना आवश्यक है । उन तत्त्वों का साक्षात्कार निःसंदेह पर शान्ति प्रदान करनेवाला एकमेव उपाय है । वह मानव की समस्त समस्याओं का रामबाण समाधान / निराकरण है, जो अन्य किसी साधन सामग्री से अशक्य है । इसका साक्षात्कार होते ही मानव अपने आपको 'दुःखी, पीडीत और अशान्त' नहीं समझता । कष्ट, अशान्ति और पीडा उसे स्पर्श तक नहीं कर सकती ।
अतः अतींद्रिय पदार्थों का निर्णय करने हेतु बुद्धि के जाल में फंस मानव-जीवन की अमूल्य पलों को व्यर्थ गँवाने के बजाय अनुभव के राजमार्ग