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२६. अनुभव
यह कोई दुनिया के खट्टे-मीठे अनुभवों की चर्चा-वार्ता नहीं है, ना ही यह राजनैतिक-सामाजिक अनुभवों का अभिनव अध्याय है। यहाँ तो प्रस्तुत है आत्मा के अगम-अगोचर अनुभव की बात ! आज तक जो अनुभव हमें मिला नहीं है, उसे साकार रूप देने के लिए आवश्यक मार्ग दर्शन है और है प्रेरणाप्रोत्साहन । जीवन में एकाध बार भी यदि आत्मा के परमानन्द का अनुभव हो जाए तो काफी है। अरे, मोक्ष-सुख का सेम्पल भी अभागिये के मार्ग में कहाँ से!
सन्ध्येव दिनरात्रिभ्यां केवलश्रुतयोः पृथक् । बुधैरनुभवो दृष्टः केवलार्कारुणोदयः ॥२६॥१॥
अर्थ : जिस तरह दिन और रात्रि से संध्या अलग है, ठीक उसी तरह ज्ञानी पुरुषों को केवलज्ञान और श्रुतज्ञान से भिन्न केवलज्ञानस्वरुप सूर्य के अरूणोदय समान अनुभव की प्रतीति हुई है. ।
विवेचन : यहाँ उस अनुभव की बात नहीं है, जिसे आमतौर से मनुष्य कहता है : “मेरा यह अनुभव है ! मैं अनुभव की बात कहता हूँ !" कहनेवाला मनुष्य सामान्यतः अपने जीवन में घटित घटना को 'अनुभव' की संज्ञा प्रदान कर कहता है। लेकिन ग्रन्थकार ने आम मनुष्य नहीं समझ सके वैसे 'अनुभव' की बात कही है !
एक समय की बात है। कोई एक सद्गृहस्थ मेरे पास आए । सात्त्विक प्रकृति और धार्मिक वृत्ति के थे । वंदन कर उन्होंने विनीत भाव से कहा :