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ज्ञानसार
मात्र शास्त्रीय ढाँचे में ढल गये हों और मन ही मन दृढसंकल्प हो गया हो कि "शास्त्र से ही स्व और पर का आत्महित सम्भव है ।" अर्थात् महायोगी ऐसी हितकारी शास्त्रीय बातों का ही उपदेश करें । शास्त्र निरपेक्ष होकर जन-मन को भानेवाले शास्त्र-विरोधी उपदेश देने की चेष्टा न करें। आमतौर से सामान्य जनता की अभिरूचि शास्त्रविपरीत ही होती है, फिर भी महायोगी / महात्मा जनाभिरुचिपोषक शास्त्र-विरुद्ध उपदेश देने का उपक्रम न करें । अहितकारी उपदेश श्रमणश्रेष्ठ कदापि न दें।
__ वह खुद का हित भी शास्त्रों के मार्गदर्शन के अनुसार ही साधने का प्रयत्न करें । जीवन की वृत्ति और प्रवृत्ति के लिए शास्त्रों का मार्गदर्शन उपलब्ध है। छोटी-बडी प्रवृत्तियाँ किस तरह की जाए इसके सम्बन्ध में शास्त्र में स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं । साथ ही, सरल सुगम और सुन्दर विधि का भी नियोजन किया गया है। मुनिराज उसे अच्छी तरह आत्मसात् करें और तदनुसार अपना जीवन जीयें । प्रसंगोपात सुपात्र को इसका उपदेश भी दें !
___ जिसे मोक्ष-मार्ग की आराधना करनी हो, आत्मा के वास्तविक स्वरुप को जिसे प्रगट करना हो, उसे शास्त्र का यथोचित आदर करना ही होगा । शास्त्र भले ही प्राचीन हो, लेकिन वे अर्वाचीन की भाँति नित्य नया संदेश देते हैं । जिसे आत्महित साधना है, उसके लिए सिवाय शास्त्र, दूसरा कोई मार्ग नहीं है। लेकिन, जिसे लौकिक जीवन ही जीना है और आत्मा, मोक्ष, परलोक आदि से कोई सरोकार नहीं है, ऐसे विद्वान, बुद्धिमान्, कलाकौशल्य के स्वामि और राष्ट्रनेता भले ही शास्त्र की तनिक भी परवाह न कर ! शास्त्रों की सरेआम अवहेलना करें। उनके और तुम्हारे आदर्श भिन्न है, उसमें जमीन-आसमान का अन्तर है ।
___ हे मुनिवर, तुम्हें तो शास्त्राधार लेना ही होगा । यही तुम्हारे लिए सर्वथा श्रेयस्कर और उपयुक्त है।