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________________ ३५८ ज्ञानसार "तुम्हें अज्ञान नामक 'सर्प' का विष चढ गया है । तुम्हें स्वच्छन्दता का ज्वर हो आया है... और पिछले कई दिनों से आ रहा है। सच है ना ? तुम्हारा 'धर्म' नामक उद्यान उजड रहा है न ? यदि तुम्हें निदान सच लगे तो ही औषधि लेना । खयाल रहे, जैसा निदान सही है वैसे उसके उपचार भी जबरदस्त हैं, अकसीर और रामबाण हैं । शास्त्ररूपी महामन्त्र का जाप करिए, शिध्र ही अज्ञान-सर्प का जहर उतर जाएगा ! 'शास्त्र' नामका उपवास कीजिए, बुखार दुम दबाकर भाग खड़ा होगा और 'शास्त्र' नाम की नींक को खुला छोड़ दीजिए, धर्मोद्यान नवपल्लवित होते देर नहीं लगेगी। लेकिन सावधान ! एकाध दिन, एकाध माह... एकाध वर्ष तक शास्त्र का स्वाध्याय-जाप करने मात्र से अज्ञान रूपी साँप का जहर नहीं उतरेगा । आजीवन... अहर्निश शास्त्र-जाप करते रहना चाहिए । स्वच्छंदता का ज्वर दूर करने के लिए नियमित रूप से शास्त्र-स्वाध्याय रूप उपवास करने होंगे । यह कोई मामूली ज्वर नहीं है, तुम्हारे अंग-प्रत्यंग में वह बुरी तरह से समा गया है ! अतः उसे दूर करने के लिए अगणित उपवास और कठोर तपश्चर्या का आधार लेना होगा । उसी तरह उजड़ते धर्मोद्यान को हरा-भरा रखने के लिए सदैव 'शास्त्र' की नीक को निरंतर खुला रखना होगा, वर्ना उसे सूखते । वीरान होते पल की भी देरी नहीं लगेगी। शास्त्राध्ययन क्यों आवश्यक है, इसे तुमने अच्छी तरह समझ लिया न ? यदि इन तथ्यों को परिलक्षित कर शास्त्राध्ययन और शास्त्र-स्वाध्याय शुरु रखोगे तो निःसंदेह तुम्हारी आत्मा का कायाकल्प ही हो जाएगा । जहर के उतर ने, ज्वर के कम होने और धर्मोद्यान को फूला-फला देखकर तुम्हें जो आह्लाद और आनन्द होगा, उसकी कल्पना करें ! उद्यान के नवपल्लवित होने से तुम्हारा दिलो-दिमाग बाग-बाग हो उठेगा, सारा समाँ हँसता-खेलता नजर आएगा! जब तुम विष रहित निरोगी बन धर्मोद्यान में विश्राम करोगे तब तुम्हें देवेन्द्र से भी अधिक आनन्द प्राप्त होगा ! हाँ, जब जहर सारे शरीर में फैल गया हो, ज्वर से तन-बदन उफन रहा हो, तब तुम्हें उद्यान में सुख और शान्ति नहीं मिलेगी । फलस्वरूप, उसकी
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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