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________________ शास्त्र ३४९ अभिमान के मदोन्मत्त गजराज पर सवार इन्द्रभूति को किस ने परमविनयी, द्वादशांगी के प्रणेता एवं अनंत लब्धियुक्त बनाया ? भोगोपभोग एवं दुनिया के राग-रंग में खोये... परम वैभवशाली शालीभद्र को पत्थर की गर्म शिला पर सोकर अनशन करने का सामर्थ्य किसने प्रदान किया ? दृष्टि में से विष का लावारस छिड़कते चंडकौशिक को किस ने शान्त, प्रशान्त और महात्मा बनाया ? अनेक हत्याओं को करनेवाले अर्जुनमाली को किस ने परम सहिष्णु और महात्मा बनने की प्रेरणा दी ? P जिनशासन के इन ऐतिहासिक चमत्कारों को क्या तुम अकस्मात कहोगे ? आत्मा को महात्मा और परमात्मा बनानेवाली जिनवाणी के शास्त्रों की तुम अवहेलना कर सकोगे ? और अवज्ञा कर तुम क्या अपने दुःख दूर कर सकोगे ? यस्माद् राग-द्वेषोद्धतचित्तान् समनुशास्ति सद्धमें । सन्त्रायते च दुखाच्छास्त्रमिति निरुच्यते सद्भिः ॥ - प्रशमरति जिस इतिहास में शास्त्र द्वारा सर्जित अनेकविध चमत्कारों की बातें संग्रहित हैं, उसका अध्ययन-अध्यापन आज के युग में भला कौन करता है ? उसके बजाय हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार, बलात्कार, परिग्रह और अशान्ति से छलकते इतिहास का पठन-पाठन आज के विद्यार्थियों को कराया जाता है । लेकिन अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की गंगा-जमुना बहानेवालों के इतिहास का स्पर्श तक करने में शर्म आती है ! असंख्य दुःखों को दूर कर, राग और द्वेष के औद्धत्य को नियंत्रित करनेवाले, साथ ही आत्मा का वास्तविक हित करनेवाले शास्त्रों के प्रति सन्मान की भावना अपनाने से ही मानव मात्र का आत्मकल्याण सम्भव है । शास्त्र एवं शास्त्रकारों पर गालियों की बौछार कर मानव समाज का सुधार करने की डिंगें हाँकना आधुनिक सुधारकों का एक-सुत्री कार्यक्रम बन गया है। ठीक वैसे ही, शास्त्र और शास्त्रप्रणेता वीतराग महापुरुषों के प्रति घृणा और अपमान
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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