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________________ २४. शास्त्र - भौतिक सुख की विवशता और असंख्य दुःखों के भार से मुक्त ऐसे ऋषि, मुनि और महात्माओं ने शास्त्र लिखे हैं । ___ सुयोग्य जीवों को शिक्षित-प्रशिक्षित किये और उन्होंने (जीवों ने) निर्वाण मार्ग का अवलम्बन किया ! ऐसे शास्त्रों का अध्ययन, मनन और परिशीलन ही मानसिक शान्ति और सुख प्रदान करता है ! शास्त्रों का स्वाध्याय ही सर्व दुःखों के भय से और सर्व सुखों की कामना से जीव को मुक्त करता है । अतः शास्त्रों, ग्रन्थों को अपना जीवनसाथी और जीवनाधार बनाओ । उसके मार्गदर्शन को ही शिरोधार्य करो। चर्मचक्षुभृतः सर्वे देवाश्चवधिचक्षुषः । सर्वतश्चक्षुषः सिद्धाः साधवः शास्त्रचक्षुषः ॥२४॥१॥ अर्थ : सभी मनुष्य चर्मचक्षु को धारण करनेवाले हैं । देव अवधिज्ञान रूपी चक्षुवाले हैं। सिद्ध केवलज्ञान-केवलदर्शनरूप चक्षुओं से युक्त, जबकि साधुजन शास्त्ररूपी चक्षुवाले हैं ! । विवेचन : सभी प्राणियों को भले चर्म-चक्षु हों, वे भले ही उससे सृष्टि के समस्त पदार्थों का निरीक्षण करें... लेकिन तुम तो मुनिराज हो ! तुम्हारे चक्षु साक्षात् शास्त्र हैं ! तुम्हें जो विश्वदर्शन और पदार्थदर्शन करना है, वह शास्त्र-चक्षुओं के माध्यम से ही करना है। देवी-देवता अवधिज्ञान रूपी चक्षुओं के धनी होते हैं । वे जो कुछ जानते अथवा देखते हैं, वह अवधिज्ञान रूपी आँखों से ही । मुनिवर्य, तुम अवधिज्ञानी
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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