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________________ ३३० ज्ञानसार (१) श्रमण-समाज को समाज-सेवा करनी चाहिएँ : अस्पताल, शाला, महाविद्यालय और धर्मशालाएँ निर्माण करानी चाहिएँ । (२) श्रमण को अस्वच्छ, फटे-पुराने वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए बल्कि स्वच्छ और अच्छे वस्त्र परिधान करने चाहिएँ ! (३) धर्म के प्रचार और प्रसार हेतु श्रमणों को कार, वायु-यान, रेल्वे का प्रवास और समुद्र-प्रवास करना चाहिए ! (४) श्रमणगण लोगों को अधिकाधिक प्रतिज्ञाएँ न दें ! (५) श्रमण अधिक दीक्षाएँ न दें ! (६) श्रमण बाल-दीक्षा न दें ! यह आधुनिक लोकमत है ! जिसकी आत्मा जागृत न हो और ज्ञानदृष्टि खुली नहीं हो, प्रायः ऐसे साधु लोक-प्रवाह के भोग बने बिना नहीं रहते... । इस प्रकार के लोकप्रवाह शिष्ट और सदाचारी समाज-रचना का अंग-भंग करने हेतु प्रचलित हैं । सुशिक्षा और समाज सुधार के नाम पर कई गंदी, बीभत्स और समाज को पतनोन्मुखी बनानेवाली योजनाएँ कार्यान्वित होती नजर आ रही हैं। १. 'आबादी बढ रही है, अनाज नहीं मिलेगा, अतः संतति-नियमन करो ! अधिक बालक न हों, इसलिए ऑपरेशन करवाओ । निरोध का उपयोग करो !' आदि विचारों का सरेआम राष्ट्रव्यापी प्रचार कर मनुष्य को दुराचारी, व्यभिचारी बनाने की योजनाएँ दिन-दहाडे कार्यान्वित हो रही हैं और लोक प्रवाह के बहाव में स्दैव बहनेवाले इसमें फँसे बिना नहीं रहते ! २. विधवाओं को पुनर्विवाह की सुविधा मिलनी चाहिए । ३. सह-शिक्षा अवश्य हो, उसका विरोध क्यों ? ४. सिनेमा से मनोरंजन होता है... ! ५. संसार में भी धर्माराधना कर सकते हैं ! मोक्ष-प्राप्ति होती है ! ऐसी मान्यता और मतों का समावेश लोक-प्रवाह में है । मुनिराज को चाहिए कि वह इन मान्यताओं का शिकार न बनें, बल्कि इसकी विरूद्ध दिशा में अपना जीवन-क्रम निरंतर जारी रखें । निर्भयता और निडरता के साथ चलते
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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