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________________ ३१४ ज्ञानसार जबकि कुछ उसकी ओर लपकते दिखायी देते हैं । ___ मच्छ और कच्छप : संसार-समुद्र में बड़े-बड़े मगरमच्छ और मछलियाँ भी हैं । छोटे-बड़े साध्य-असाध्य रोगों के मच्छ भी मुसाफिरों के लिए आफत बने रहते हैं... । उन्हें हैरान-परेशान करते हैं । एकाध मगरमच्छ का खाद्य बनता दिखायी देता है, तो कोई इन मछलियों की गिरफ्त में फँसा नजर आता है । इन रोग रुपी मच्छों से प्रवासी सदैव भयभीत होते हैं । ठीक उसी तरह शोक-कछुओं की भी इस संसार-सागर में कमी नहीं है, जो प्रवासियों को कोई कम हैरान-परेशान नहीं करते । चंचला : जरा आकाश की ओर दृष्टिपात करो । रह-रहकर चंचला कौंधती नजर आती है। उसकी चमक-दमक इन आँखों से देखी न जाए, ऐसी चकाचौंध करनेवाली अजीबो-गरीब होती है । कभी-कभार वह हमें छूते हुए विद्युत-वेग से निकल जाती है । दुर्बुद्धि ही चंचला है । हिंसामयी बुद्धि झूठचोरी की बुद्धि, दुराचार-व्यभिचार की बुद्धि, माया-मोह की बुद्धि और राग-द्वेष की बुद्धि । चंचला की चमक-दमक में जीव चकाचौंध हो जाता है। तूफान : मत्सर की आंधी कितने जोर-शोर से जीवों को अपनी चपेट में ले लेती है ! गुणवान व्यक्ति के प्रति रोष यानी मत्सर ! संसार-सागर में ऐसी आंधी आती ही रहती है। क्या तुमने कभी नहीं देखी ? तुम्हें उसकी आदत पड़ गयी है। अत: तुम उसकी भयंकरता... भीषणता को समझ नहीं पाओगे । लेकिन गुणवान व्यक्ति के प्रति तुम्हारे मन में रोष की भावना क्या पैदा नहीं होती ? ऐसे समय तुम्हारे मन में कैसा तूफान पैदा होता है ? जो इस तूफान में फँस गया... उसकी गुण-संपदा नष्ट होते देर नहीं लगती । वह गुण-संपदा से दूरसुदूर निकल जाता है। गर्जन-तर्जन : द्रोह-विद्रोह का गर्जन-तर्जन संसार-समुद्र में निरन्तर सुनायी देता है । पिता पुत्र का द्रोह करता है, तो पुत्र पिता का द्रोह करता है। प्रजा राजा का द्रोह करती है, तो राजा प्रजा का द्रोह करता है। पत्नी पति का द्रोह करती नजर आती है, तो पति पत्नी का द्रोह करता दृष्टिगोचर होता है। शिष्य गुरु का द्रोह करता है और गुरु शिष्य का द्रोह करता है । जहाँ देखो, वहाँ द्रोह
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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