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________________ ३१३ भवोद्वेग वही उसका उद्गम स्थान है । पाताल-कलश : संसार-सागर में चार प्रकार के पाताल-कलश विद्यमान हैं : क्रोध, मान, माया और लोभ ! इनमें से प्रचंड वायु उत्पन्न होती है और सागर में तूफान पैदा करती है... । ज्वार भाटा : मन के विभिन्न विकल्पों का ज्वार-भाटा संसार सागर में आता रहता है । कषायों में से विषय-तृष्णा जागृत होती है और विषय तृष्णा में से मानसिक विकल्प पैदा होते हैं । जानते हो, मानसिक विकल्पों का ज्वार कितना जबरदस्त होता है... ? पूरे समुद्र में तूफान आ जाता है... ! पानी की तरंगें किनारे को तोड़ती हुई भयानक दैत्य-सा रूप धारण कर लेती हैं । आम तौर पर समुद्र में पूर्णिमा की रात्रि को ही ज्वार आता है । लेकिन संसारसागर में तो निरंतर ज्वार आता रहता है। क्या तुमने कभी ज्वार के समय तूफानी स्वरुप धारण करते सागर को निकट से देखा है ? शायद नहीं देखा हो ! लेकिन अब मानसिक विकल्पों के ज्वार को अवश्य देखना ! उसे देखते ही तुम घबराहट से भर जाओगे। . वडवानल : कैसा दारूण वडवानल भभक रहा है ! कंदर्प के वडवानल में संसारसमुद्र का कौन-सा प्रवासी फँसा नहीं है? इस दुनिया में कौन माई का लाल है, जो उक्त वडवानल की उग्र ज्वालाओं से बच पाया है ? उसमें राग का इन्धन डाला जाता है। राग के इन्धन से वडवानल सदा-सर्वदा प्रज्वलित रहता है। वाकइ, कंदर्प का वडवानल आश्चर्यजनक है! वडवानल में जीव निर्भय बनकर कूद पड़ते हैं ! भड़कते वडवानल के बावजद वे उसमें से निकलने का नाम नहीं लेते... बल्कि राग का इन्धन डाल-डालकर उसे निरन्तर प्रदीप्त रखते हैं ! कंदर्प यानी काम वासना / भोग-सम्भोग की तीव्र लालसा । नर नारी के सम्भोग की वासना में घू-घू जलता है और नारी नर के सम्भोग में । जबकि नपुंसक, नर व नारी, दोनों के सम्भोग की वासना में जलता है। वास्तव में देखा जाए तो संसारसागररूपी वडवानल, भयंकर, भीषण और सर्वभक्षी है... । सामान्यतः संसार-सागर के सारे प्रवासी इस (वडवानल) में फँसे नजर आते हैं,
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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