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________________ २९६ ज्ञानसार बन बैठा है और उच्च जातिवाला कुशाग्र बुद्धि का धनी दफ्तर और कार्यालय में चपरासी, चाकर और पहरेदार बन कर रह गया है । नीच जाति के लोग 'बड़े' बन गये हैं ! जबकि उच्च जाति में जन्मा हर तरह से कुशल, उसकी अटेची उठाकर आगे-आगे चलता नजर आता है । प्रायः यह देखा गया है कि यश, कीर्ति, सत्ता, सौभाग्य, सुस्वर, आदेयता आदि कर्म, उच्च और नीच जाति में भेदाभेद नहीं करते, ठीक वैसे ही अपयश, अपकीर्ति, दुर्भाग्य, कर्कश स्वर अनादेयता आदि की उच्च जाति से न कोई दुश्मनी है अथवा न परहेज है। जानते हो, हमारे स्वतंत्र भारत के संविधान कर्ता कौन थे ? डा. आम्बेडकर ! उनका जन्म नीच जाति में ही हुआ था । काँग्रेसाध्यक्ष कामराज, जो हमारे स्व. प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू के युग की एक जानी मानी हस्ती और 'कामराज - योजन' के जनक थे वे भी नीच कुल में ही जन्मे थे । दोनों हस्तियाँ हरिजन थीं ! भारत के भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष डॉ. जाकीर हुसैन एक मुस्लिम परिवार में जन्मे थे ! जबकि तत्कालीन काँग्रेस प्रमुख दामोदर संजीवैया भी हरिजन परिवार से ही थे ! भारत के सर्वोच्च स्थानों पर हीनजाति के लोग बैठे थे ! उसके पीछे कौन सी अदृश्य शक्ति काम कर रही थी ? आखिर उसका राज क्या था ? सिर्फ एक, उनके शुभ कर्मों का उदय ! जबकि उच्च कुल में पैदा हुए लोगों की कीर्ति- पताका तार-तार हो गयी ! उनका सौभाग्य और आदेयता मानो लुप्त हो गयी ! तीस करोड़ हिन्दुओं के सर्वमान्य धर्मगुरु शंकराचार्य को अकस्मात् जेल का आतिथ्य ग्रहण करना पड़ा, उनकी गो-रक्षा की माँग सरकार ने नहीं सुनी और उन्हें शासकीय स्तर पर अनादर का भाजन बनना पड़ा ! यह सब कर्मों का खेल है ! उसमें हर्ष - शोक का प्रश्न ही नहीं उठता। किसी कवि ने ठीक ही कहा है । कबहीक काजी कबहीक पाजी कबहीक हुआ अपभ्राजी; कबहीक कीर्ति जगमें गाजी सब पुद्गल की है बाजी... !
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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