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जानसार
वह है कर्म तत्त्व... !
यश, कीर्ति, सौभाग्य, सफलता, सत्ता और शक्ति यह सब 'शुभ कर्म' के परिणाम हैं । उनकी अपनी समयमर्यादा होती है। लेकिन अल्पमति मनुष्य इससे पूर्णतया अनभिज्ञ होता है। वह उसकी कालमर्यादा को जानता नहीं। अत: उसे दीर्घकालीन समझ लेता है । लेकिन जब कल्पित ऐसे अल्पकालीन शुभ कर्मों का अस्त हो, अचानक अशुभ कर्मों का उदय होता है, तब पतन, अध:पतन और विनाश की दुर्घटनायें घटती हैं !
अपयश, दुर्भाग्य, अपकीर्ति, निर्बलता और सत्ताभ्रष्टता, ये अशुभ कर्मों के फल हैं । सूरमाओं के सरदार इजिप्त के राष्ट्राध्यक्ष नासिर को इजराईल जैसे छोटे राष्ट्र के हाथों हार खानी पड़ी, जीते-जी कलंक का धब्बा अपने दामन पर लगा, एक 'दुर्बल शासक' के रुप में प्रसिद्ध हुआ... भला क्यों ? सिर्फ एक ही कारण ! उसके शुभ कर्मों का अस्त हो गया था और अशुभ कर्मों ने उस पर अधिकार कर लिया था ।
लेकिन यों घबराने से काम नहीं चलता । अशुभ कर्म की कालमर्यादा पूरी हो जाने पर, शुभ कर्म का पुन: उदय होता है ।
दूसरी भी एक विचित्रता है कि जब कतिपय अशुभ कर्मों का उदय चल रहा हो तब कुछ शुभ कर्मों का उदय भी उसके साथ-साथ हो सकता है। लेकिन प्रतिपक्षी नहीं । उदाहरण के लिए : यश का उदय हो तब उसके प्रतिपक्षी अपयश, यानी अशुभ कर्म का उदय नहीं होता, लेकिन बीमारी, जो स्वयं ही एक अशुभ कर्म हैं, का उदय सम्भव है ! क्योंकि बीमारी यह यश का प्रतिपक्षी कर्म नहीं है।
जब तक कर्म हमारे अनुकूल हैं, तबतक जीव जो चाहे उत्पात, ऊधम और आंदोलन करें और हूँकार भरें, लेकिन जैसे ही अशुभ कर्मों का उदय हुआ नहीं कि जीव का उत्पात, उद्यम और उन्माद पलक-झपकते न झपकते खत्म हो जाते हैं । गर्वहरण होता है और वह अपमानित हो दुनिया के मजाक का विषय बन जाता है । अत: कर्म का विज्ञान जानना आवश्यक है।