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________________ कर्मविपाक-चिन्तन २९१ 1 कर्म के ये कैसे कठोर विपाक हैं ? ज्ञानावरणीय कर्म के विपाक से अज्ञान, मूर्खता और मूढता का जन्म होता है । दर्शनावरणीय कर्म के उदय से घोर निद्रा, अन्धापन, मिथ्या - प्रतिभास का शिकार बनता है ! जबकि मोहनीय कर्म के विपाक तो अत्यन्त भयंकर और असहनीय होते हैं कि बात ही न पूछो ! बिलकुल विपरीत समझ होती है ! परमात्मा, सदगुरु और सद्धर्म के सम्बन्ध में एकदम उलटी कल्पना ! वह हितैषी को दुश्मन मानता है और दुश्मन को गहरा दोस्त ! क्रोध से लाल-पीला हो जाएँ और अभिमान के शिखर पर आरूढ हो, फिसल पड़ता है! साथ ही, मोह- जाल बिछाता है। लोभ- फणिधर के साथ खेलता है ! न जाने मोहनीय कर्म के विपाक कैसे भयानक हैं ! बात-बात में भय और नाराजगी ! क्षण में हर्ष और क्षण में शोक ! हरदम डर और हरदम जुगुप्सा ! पुरुष को स्त्री समागम की तीव्र लालसा और स्त्री को पुरुष - देह की अभिलाषा ! जबकि नपुंसक को स्त्री - पुरुष - दोनों का आकर्षण ! अन्तराय कर्म के विपाक भी जटिल और निश्चित हैं! पास में वस्तु हो, लेनेवाला सुयोग्य - सुपात्र व्यक्ति हो, लेकिन देने की इच्छा नहीं होती ! सामने वस्तु हो, मन पसन्द हो, फिर भी प्राप्त नहीं होती । लाडी (नारी) गाडी (वाहन) और वाडी (बंगला) होते हुए भी उसका उपभोग न कर सके । इष्ट भोजन सामने होते हुए खा न सके ! तपश्चर्या करने की भावना न हो ! मुनि किसीको ऊँचे कुल में और किसीको नीच कुल में जन्मा देख, यह सोचते हुए समाधान करता है कि, 'यह सब गोत्र - कर्म का विपाक है।' मुनि जब किसीको निरोगी, पूर्ण स्वस्थ देखता है और किसीको रुग्ण... बीमार ... सड़ता... गलता हुआ देखता है तब यह समाधान करता है कि यह सबलतादुर्बलता वेदनीय कर्म का विपाक है ! मुनि किसीको मनुष्य रुप में, किसीको पशु रुप में तो किसीको देव रुप में और किसीको नरक रुप में जानता है तब यों सोच कर समाधान करता है कि, 'यह उसके आयुष्य कर्म और गतिनाम कर्म का विपाक है। मुनि जब किसीको बाल्यावस्था में मरते हुए देखता है, किसीको युवावस्था में तो किसीको वृद्धावस्था में, तब उसे किसी प्रकार का दुःख, शोक अथवा आश्चर्य नहीं होता । वह उसे सिर्फ आयुष्य कर्म का परिणाम समझता है
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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