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________________ २८२ ज्ञानसार तो सचमुच क्षमा-पृथ्वी को धारण कर रखा है ! क्षमा आपके सहारे ही टिकी कैसी आप की क्षमा और सहनशीलता ! वास्तव में वर्णनातीत है। गुरुदेव चंडरूद्राचार्य अपने नवदीक्षित शिष्य श्रमण के लुंचित मस्तक पर दण्डप्रहार करते हैं, लेकिन नवदीक्षित मुनि शेषनाग जो ठहरे ! उन्होंने क्षमा धारण कर रखी थी। दण्ड-प्रहार की मार्मिक पीडा के बावजूद उन्होंने क्षमा-पृथ्वी को जरा भी हिलने नहीं दिया । उन्होंने सहनशीलता की पराकाष्ठा कर दी । शेषनाग अगर यों दण्डप्रहार से भयभीत हो जाए, विचलित हो जाए, तो भला पृथ्वी को कैसे धारण कर सकेगा ? फलतः नवदीक्षित मुनिराज अल्पावधि में ही केवलज्ञानी बन गये। ब्रह्मचर्य और सहनशीलता ! इनके पालन और रक्षा के कारण मुनि शेषनाग हैं । "में शेषनाग हूँ, नागेन्द्र हूँ।" की सगर्व स्मृति-मात्र से ब्रह्मचर्य में दृढता और सहनशीलता में परिपक्वता का प्रादुर्भाव होता है । मुनिरध्यात्मकैलासे विवेकवृषभस्थितः । शोभते विरतिज्ञप्तिगंगागौरीयुतः शिवः ॥२०॥५॥ अर्थ : मुनि अध्यात्मरुपी कैलाश के उपर और विवेक (सद्-असद् के निर्णयस्वरुप)रुपी वृषभ पर बैठ, चारित्र कला एवं ज्ञान कला स्वरुप गंगागौरी सहित महादेव की भाँति सुशोभित हैं। . विवेचन : महादेव शंकर ! मुनिश्री आप ही शंकर हैं ! क्या आप जानते हैं ? यह कोई हँसी मजाक की बात नहीं, बल्कि हकीकत है। महादेव शंकर की शोभा... उनका महाप्रताप... अद्वितीय प्रभाव... सब कुछ आपके पास है। आप सकल समृद्धि और सिद्धियों के एकमेव स्वामी हैं। हाँ, आपका निवास स्थान भी कैलाश पर्वत है। अध्यात्म के कैलाश पर आप अधिष्टित हैं न ? निरे पत्थरों की पर्वतमाला
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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