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सर्वसमृद्धि
... २८१ आप अपने ऊपर धारण किये हुए हैं। वह आप के सहारे टिकी हुई है। अब बताइए आप नागेन्द्र हैं या नहीं ? सच मानिए, हम आपकी खुशामद अथवा चापलूसी नहीं कर रहें हैं । व्यर्थ की प्रशंसा कर हम रिझाना नहीं चाहते । बल्कि जो वास्तविकता है, यथार्थ है, वह बात कर रहे हैं ।
वाकई आप ब्रह्मचर्य के नौ नियमों का पालन कर, मन-वचन और काया के योग से ब्रह्मचर्य के अमृत कुण्ड में रमण करते हैं, केलिक्रीडा करते हैं । १. स्त्री, पुरुष और नपुंसक का जहाँ वास है वहाँ आप नहीं रहते । २. स्त्री कथा नहीं करते । ... ३. जहाँ स्त्री समुदाय बैठा हो, वहाँ आप नहीं बैठते । ४. दीवार की दूसरी ओर हो रही स्त्री-पुरुष की राग-चर्चा अथवा प्रेमालाप आप
नहीं सुनते और ऐसे स्थान को छोड़ देते हैं । ५. सांसारिक अवस्था में की हुई कामक्रीडा का कभी स्मरण नहीं करते । ६. विकारोत्तेजक पदार्थ : घी, दूध, दही, मलाई, मिष्टान्न आदि का कभी सेवन
नहीं करते । ७. अति आहार नहीं करते, यानी ठूस ठूस कर खाना नहीं खाते । ८. शरीर को सुशोभित नहीं करते । ९. स्त्री के अंगोपांग को एकटक नहीं निहारते ।
ब्रह्मचर्य के अमृत-कुण्ड में आप कैसे अपूर्व आह्लाद का अनुभव कर रहे हैं । इस आह्लाद का वर्णन कैसे किया जाए और किन शब्दों में किया जाए? साथ ही यह बात वर्णनयोग्य ही कहाँ है ? अपितु गोता लगाकर अनुभव करने की बात है ! सचमुच, आप ब्रह्मचर्य के अमृतकुण्ड के अधिपति हैं, अधिनायक हैं और हैं स्वामी ! इस आनन्द की तुलना में विषयसुख की केलि-क्रीडा का आनन्द तुच्छ है, नहींवत् है, असार है ।
क्षमा यानी पृथ्वी... !
सारे भूतल पर यह लोकोक्ति सर्वविदित है : 'शेषनाग पृथ्वी को धारण किये हुए हैं !' सम्भव है यह लोकोक्ति सत्य न हो, लेकिन हे मुनिन्द्र, आपने