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सर्वसमृद्धि
२७७ खुलते ही यह सब अलोप होते देर न लगेगी और परिणामतः पुनः गाँव-नगर की गली कूचों में भटकते भिखारी बन जाओगे ।
समाधिर्नन्दनं धैर्य दम्भोलिः समताशचिः । ज्ञानं महाविमानं च वासवश्रीरियं मुनेः ॥२०॥२॥
अर्थ : समाधिरूपी नन्दनवन, धैर्य रूपी वज्र, समता रूपी इन्द्राणी और स्वरूप-अवबोध रूपी विशाल विमान, इन्द्र की यह लक्ष्मी मुनि को होती है !
विवेचन : मुनिराज आप स्वयं इन्द्र हैं !
आपकी समृद्धि और शोभा का पार नहीं, अपरम्पार है ! आपको किसी बात की कमी नहीं, ना ही आप दीन हीन और दयनीय हैं ! देवराज इन्द्र की समस्त समृद्धि के आप स्वामी हैं । आइए, तनिक अलौकिक समृद्धि के दर्शन करीये ।
यह रहा आपका नन्दनवन... ! नन्दनवन कैसा सुरम्य, हरियाली से युक्त, आह्लादक और मनोहारी है ! ध्याता, ध्यान और ध्येय के मिलन स्वरुप समाधि के नन्दनवन में आपको नित्यप्रति विश्राम करना है। इस में प्रवेश करने के पश्चात् आपको अन्य किसी चीज की याद नहीं आएगी। प्रतिदिन नया, नूतन लगनेवाला यह नन्दनवन आपका अपना है... ? अच्छा लगा न ?
आपको क्या शत्रुओं का भय है ? हमेशा निर्भय रहिए । अति दुर्गम पर्वतमालाओं को क्षणार्ध में चकनाचूर कर दे, क्षत-विक्षत कर दे ऐसा शक्तिशाली वज्र आप के पास है। फिर भला, डर किस बात का? इन्द्र इस वज्र को प्रायः अपने पास रखता है, वैसे आप को भी हे मुनिन्द्र ! धैर्य रुपी वज्र को सदासर्वदा अपने पास रखना है। यदि परिषहों की पर्वतमाला आपका मार्ग अवरुद्ध कर दे तो धैर्य-वज्र से उन्हें चकनाचूर कर निरंतर आगे बढ़ते रहना है । क्षुधा या पीपासा, शीत या उष्ण, डाँस या मच्छर, नारी या सम्मान... आदि किसी भी परिषह से आपको दीनता या उन्माद नहीं करना है । धैर्य-वज्र से उसे पराजित कर सदा विजयश्री वरण करते रहना है। -- --
आपको अकेलापन, एकांत खलता है न ? आप के मन को स्नेह से