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ज्ञानसार
अर्थ : सर्वोच्चता की दृष्टि के दोष से उत्पन्न स्वाभिमान रुपी ज्वर को शान्त करनेवाले पूर्वपुरुष रुपी सिंह से अत्यन्त न्यूनता की भावना करने जैसी
है।
विवेचन : उच्चता का खयाल ! खतरनाक खयाल है ! "मैं सर्वोच्च हूँ। मैं दूसरों के मुकाबले महान् हूँ। तप और चारित्र से बडा हूँ । ज्ञान से श्रेष्ठ हूँ । सेवा-सादगी के क्षेत्र में परमोच्च हूँ।" यदि इस तरह की नानाविध वैचारिक तरंगें किसी के दिमाग में निरन्तर उठती हों, तो निहायत खतरनाक और भयानक है । याद रखना, इन्हीं विचार-तरंगों से एक प्रकार का ऐसा विषम ज्वर पैदा होगा कि जान के लाले पड़ जाएंगे। ऐसी ज्वर, कि जो मलेरिया, न्यूमोनिया और टायफाइड से भी भयंकर होता है और वह है-अभिमान... मिथ्याभिमान !
सम्भव है, ज्वर का यह नाम तुमने जिंदगी में पहली बार ही सुना होगा। तेज बुखार में मनुष्य को मिठाई कडवी लगती है। वह निरन्तर अनर्गल बकवास
और पागलपन के प्रलाप करता रहता है। अपनी सुध-बुध और होशो-हवास खो बैठता है । अभिमान... मिथ्याभिमान के विषम ज्वर में भी ये ही सारी प्रतिक्रियायें होती रहती हैं । लेकिन अभिमानी व्यक्ति इसे देख नहीं पाता और ना ही समझ पाता है।
___ अभिमान के तेज बुखार में नम्रता, विनय विवेक, लघुता की मेवा-मिठाई कभी नहीं भाती, बल्कि कडवी लगती है। ठीक वैसे ही उस पर 'पर-अपकर्ष' के पागलपन की धुन सवार हो जाती है । फलतः वह क्या बकता है, उस हालत में कैसा लगता है, आदि बातों का उसे भान नहीं रहता । वह उसी दौर में पूज्य माता-पिता का अपमान करता है । परम आदरणीय गुरुदेवों का उपहास करता है। अन्य गुणीजनों को तुच्छ समझता है । उनके दोषों को संबोधित कर उन्हें अपमानित करने की चेष्टा करता है।
क्या ऐसे विषम ज्वर को उतारना है, शान्त करना है ? यदि अभिमान को 'ज्वर' स्वरूप में मान लें तभी यह सम्भव है। उसे दूर करने के प्रयत्न किये जा सकते हैं। अभिमान के विषम ज्वर से पीडित जीव आत्मकल्याण के मार्ग पर चल नहीं सकता । शायद वह यों कह दे कि, "मैं मोक्षमार्ग पर ही हूँ' तो
क्या एस