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ज्ञानसार
जमीन पर पटक देते हैं।
अच्छी तरह पहचान लो इस प्रचण्ड पवन को । इसका नाम भय है !
जिस तरह आँधी की तीव्र गति में आक की रूई उडकर आकाश में निराधार उडती रहती है, ठीक उसी तरह भय के भयंकर तूफान का भोग बन मनुष्य भी ऊपर उडकर यहाँ-वहाँ भटकता रहता है। आश्रय के लिए आकुलव्याकुल हो जाता है । विकल्पों की दुनिया में निरर्थक चक्कर काटता रहता है, बिना किसी आधार, निराधार निराश्रय बनकर ! भय की आहट मात्र से मनुष्य उडने लगता है !
___ और भय भी एक प्रकार का नहीं बल्कि अनेक प्रकार के हैं : रोग का भय, बेइज्जत होने का भय, धन-सम्पत्ति चले जाने का भय, समाज में लांछितअपमानित होने का भय और परिवार बिगड़ जाने का भय ! ऐसे कई प्रकार के भय का पवन सनसनाने लगता है और मूढ मनुष्य अपनी सारी सुध-बुध खोकर बावरा बन, उडता चला जाता है ! उसके मन में न स्थैर्य होता है और ना ही
शान्ति ! .
जबकि मुनिराज ज्ञान के भार से प्रबल भारी होते हैं ! सत्त्वगुण का भार बढ़ता जाता है और तभी रजोगुण का भार नहिवत् हो जाता है ।
हिमाद्रि सदृश ज्ञानी पूरूषों का रोंगट तक नहीं फडकता, भले ही फिर प्रचंड आँधी और तूफान से सारी सृष्टि में ही क्यों न उथल-पुथल हो जाएं ! ज्ञानी पुरुष नगाधिराज हिमालय की भाँति संकटकाल में सदा अजेय, अटल, अचल और सदा निष्प्रकम्पित ही रहते हैं। झांझरिया मनि को लांछित करने हेत निर्लज्ज नारी ने उनके पाँव में पैंजन पहना दिया और उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गयी ! जब अपनी मनोकामना पूरी होते न देखी तब सरे आम चिल्ला पड़ी : "दौड़ो-दौड़ो, इस साधु ने मेरी इज्जत लूट ली !" परन्तु मुनिवर के मुख पर अथाह शान्ति के भाव थे । वे तनिक भी विचलित न हुए और बंबावटी नगरी के राजमार्ग पर बढ़ते ही रहे ! वहाँ न भय था, न कोई विकल्प ! "अब मेरा क्या होगा ? मेरी इज्जत चली जाएगी ? नगरजन मेरे बारे में क्या अनर्गल बातें