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________________ निर्भयता २३९ अतः हमेशा ज्ञान - कवच सम्हाल कर रखना चाहिए । भूलकर भी कभी दीवार पर टांगने की मूर्खता की, अलमारी में बन्ध कर दिया और इधर एकाध मोहास्त्र कहीं से आ टपका तो काम तमाम होते देर नहीं लगेगी ! ज्ञान - कवच कस कर बांधे रखिए ! जानबूझ कर ज्ञान - कवच दूर मत करो ! वह दूर सरक नहीं जाये - इसलिये सावधान रहें। चूंकि कभी-कभी वह कवच सरक कर गिर जाता है ! • इन्द्रियाधीनता • गारव ( रसादि) • कषाय (क्रोधादि) • परिषह - भीरुता इन चारों में से एकाध के प्रति भी तुम्हारे मन में प्रेम पैदा होने भर की देर है ! कि ज्ञान - कवच सरक ही जाएगा और मोहास्त्र का जबरदस्त वार तुम्हारे सीने को छिन्न भिन्न कर देगा ! तुम पराजित हो, धराशायी हो जाओगे । संवेग-वैराग्य और मध्यस्थदृष्टि को विकसित - विस्तारित करनेवाले शास्त्र-ग्रन्थों का नियमित रूप से पठन-पाठन, चिंतन-मनन और परिशीलन करते रहो ! तुम्हारी जीवन-दृष्टि को उसके रंग में रंग दो ! तूलवलघवो मूढा भ्रमन्त्य भयानिलैः । नैकं रोमापि तैज्ञनगरिष्ठानां तु कम्पते ॥ १७ ॥७॥ अर्थ : आक की रूई की तरह हलके और मूढ ऐसे लोग भय रुपी वायु के प्रचंड झोंके के साथ आकाश में उडते हैं, जबकि ज्ञान की शक्ति से परिपुष्ट ऐसे सशक्त महापुरुषों का एकाध रोंगटा भी नहीं फडकता । विवेचन : प्रचंड आँधी आने पर तुमने आकाश में धूल के गुब्बारे उडते देखे होंगे ? कपड़े और घास-फूंस के तिनके उडते देखे होंगे ? लेकिन कभी मनुष्य को उड़ते देखा है ? हाँ, बड़े-बड़े, भारी-भरकम मनुष्य जैसे मनुष्य भी उड जाते हैं ! वायु के झंझावाती झोंके उन्हें आकाश में उड़ा ले जाते हैं और
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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