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________________ निर्भयता २३५ मुनिवर दो प्रकार के युद्ध में सावधान होते हैं ! 'ओफन्सिव' और डिफेन्सिव' (OFFENSIVE AND DIFFENSIVE) ! शत्रु पर आक्रमण कर उसे धराशायी करने के साथ-साथ वह स्व-सम्पत्ति का संरक्षण भी करते हैं । ठीक उसी तरह किसी अन्य मार्ग से शत्रु घुसपैठ कर लूट-मार न मचा दे, इसकी पूरी सावधनी भी बरतते हैं। मुनि उपवास, छठ्ठ अट्ठमादि उग्र तपश्चर्या करते हैं । यह भी मोहरिपु के खिलाफ एक जंग है, जो समय-समय पर खेलते रहते हैं । लेकिन फिर भी मुनिराज को अपने जाल में फंसाने के प्रयत्नों में मोहराजा भी कोई कसर नहीं रखता ! 'आहार संज्ञा' के मोर्चे पर मुनिराज को लडता छोड दूसरी ओर से वह उनके क्षेत्र में अभिमान और क्रोध के सुभटों को छद्मवेश में घुसा देता है ! लेकिन मुनि भी इतने सीधे सादे और भोले नहीं हैं ! मोहराजा सेर हैं तो मुनिवर सव्वासेर जो ठहरे ! वे 'डिफेन्सिव' जंग में भी निपुण होते हैं । अतः तपश्चर्या करते समय वो क्रोध ओर अभिमान से हमेशा दूर रहते हैं । मोहराज के इन सुभट-द्वय को वे अपने पास फटकने नहीं देते ! ब्रह्मास्त्र की सहायता से महामुनि रणक्षेत्र में रणसिंघा फुक मोहरिपु की विराट सेना को मार-काट करते हुए, लाशों को रौंदते हुए आगे बढ जाते हैं ! बेचारा मोह ! सारी दुनिया को अपनी अंगुली के इशारे पर नचाता है, लेकिन मुनिवर का वह बाल भी बाँका नहीं कर सकता ! वह निस्तेज, अशक्त और निर्जीव सिद्ध होता है ! मुनि राज की निर्भयता और अजेयता के आगे उसका कुछ नहीं चलता ! हमेशा एक बात याद रखो ! शत्रु की कैसी भी घेरेबन्दी क्यों न हो ? तुम सदा निर्भय बने रहो ! ब्रह्मज्ञान का हथियार हाथ में रहने दो ! उसे अपने से अलग न करो ! उसे छीनने के लिए शत्रु लाख प्रयत्न करेगा, शाम, दाम, दण्ड और भेद का आधार लेगा, तुम्हें प्रलोभन दिखाकर बहकाने का प्रयत्न करेगा। लेकिन सावधान ! हथियार हाथ से चला न जाए ! मुनि को इसकी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए । फिर भय का प्रश्न ही नहीं उठेगा. !
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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