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________________ २३२ ज्ञानसार और यौवन में अलख की बहार आ जाती है। सारा वातावरण अद्भुत-रम्य बन जाता है और अलख की धडकन से हृदय सराबोर हो उठता है । पामर जीव को परमोच्च और रंक को वैभवशाली बनाने की अभूतपूर्व शक्ति 'ज्ञानसुख' में है । आत्मा के अतल उदधि की अगाधता को स्पर्श करने की अनोखी कला 'ज्ञानसुख' में है । जबकि ऐसी अगम्य शक्ति और कला संसार-सुख में कतइ नहीं है । अत: संसार-सुख की तुलना में ज्ञानसुख शतप्रतिशत प्रभावशाली और अद्वितीय है। मतलब, ज्ञान से ही जब परम सुख और अवर्णनीय आनन्द की प्राप्ति हो जाएगी, तब संसारसुख अपनेआप ही भस्मसा लगेगा। न गोप्यं क्वापि नारोप्यं हेयं देयं च न क्वचित् । क्व भयेन मुनेः स्थेयं ज्ञेयं ज्ञानेन पश्यतः ? ॥१७॥३॥ अर्थ : जानने योग्य तत्त्व को स्वानुभव से समझते मुनि को कोई कहीं छिपाने जैसा अथवा रखने जैसा नहीं है। ना ही कहीं छोडने योग्य है ! तब फिर भय से कहाँ रहना है ? अर्थात् मुनि के लिए कहीं पर भी भय नहीं है । विवेचन : हे मुनिवर ! क्या आपने कुछ छिपा रखा है ? क्या आपने कोई वस्तु कहाँ रख छोडी है ? क्या आपने कोई चीज जमीन में दबा रखी है? क्या आप को कुछ छोड़ना पड़े ऐसा है ? क्या आपको कुछ देना पडे ऐसा है ? फिर भला, भय किस बात का ? ___मुनिश्रेष्ठ ! आप निर्भय हैं ! आपको निर्भय बनानेवाली ज्ञानदृष्टि है ! ज्ञानदृष्टि से विश्वावलोकन करते हुए तुम निर्भयता की जिंदगी बसर कर रहे हो? ___ जहाँ ज्ञानदृष्टि वहीं निर्भयता ! समस्त सृष्टि को जानना है राग-द्वेष किये बिना ! जगत की उत्पत्ति, विनाश और स्थिति को जानना-देखना यही ज्ञानदृष्टि कहलाती है। जब तुम ज्ञानदृष्टि के सहारे सारे संसार को देखोगे तब राग-द्वेष और मोह का कहीं नामोनिशान नही होगा । यदि विश्वावलोकन में किंचित् भी रागद्वेष और मोह का अंश आ गया तो समझ लेना चाहिए कि जो अवलोकन कर रहे हैं वह ज्ञानदृष्टि से युक्त नहीं है, बल्कि ज्ञानदृष्टि-विहिन है और है अज्ञान से
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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