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________________ ज्ञानसार २२६ ढोने लगी । एक दिन की बात है ! ब्राह्मण - कन्या नित्यानुसार बैल को लेकर जंगल में गयी और एक वृक्ष के नीचे चरने के लिए उसे छोड दिया ! उस वृक्ष पर विद्याधर- युगल बैठा हुआ था ! बैल को निहार कर विद्याधर ने अपनी पत्नी से कहा : “यह स्वभाव से बैल नहीं है। लेकिन जडी-बुट्टी खिलाने से मनुष्य का बैल बन गया है ।" विद्याधर की पत्नी विचलित हो गयी । उसे बेहद दुःख हुआ । उसमें करुणा भावना जग पड़ी ! उसने दयार्द्र होकर विद्याधर से कहा : " बहुत बुरा हुआ । क्या यह दुबारा मनुष्य नहीं बन सकता ?" "यदि इसे 'संजीवनी' नामक जड़ी खिला दी जाए तो यह पुनः पुरुष हो सकता है और संजीवनी इसी वट वृक्ष के नीचे ही है।" विद्याधर ने शान्त स्वर में कहा । जमीन पर बैठी ब्राह्मण- कन्या विद्याधर पति-पत्नी की बात सुन अत्यन्त प्रसन्न हो उठी! उसने अपने पति 'बैल' को संजीवनी खिलाने का मन ही मन निश्चय किया ! लेकिन बदनसीब जो ठहरी ! वह 'संजीवनी' जडी-बुट्टी से पूर्णतया अपरिचित थी ! वृक्ष के नीचे भारी मात्रा में घास उगी हुई थी ! उसमें से अमुक जडी-बुट्टी ही 'संजीवनी' है, यह कैसे समझे ? अजीब उलझन में फँस गयी वह । कुछ क्षण विचार करती रही और तब उसने मन ही मन कुछ निश्चय कर, वृक्ष तले उगी बनस्पति चरने के लिए बैल को छोड दिया ! परिणाम यह हुआ कि वनस्पति चरते ही बैल पुनः मनुष्य में परिवर्तित हो गया ! अपने पति को सामने खड़ा देख, उसकी खुशी की कोई सीमा न रही ! तात्पर्य यह है कि जीव भले ही अपुनर्बंधक हो, मार्ग - पतित या मार्गाभिमुख, समकित धारी, देशविरति या सर्वविरति साधु हो ! यदि उसे मध्यस्थ भाव - आत्मानुकूल समभाव की जडी-बुट्टी खिलादी जाएँ, तो अनादि परभाव की परिणतिरुप पशुता खत्म हो जाएँ और वह स्वरुपविषयक ज्ञान में कुशल भेदज्ञानी पुरुष बन जाए । मध्यस्थ वृत्ति इस प्रकार हितकारी सिद्ध होती है। लेकिन उसके
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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