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________________ २१३ विवेचन : मध्यस्थ पुरुष का मन बछड़ा है और युक्ति गाय है ! बछड़ा गाय के पीछे दौड़ता है । मध्यस्थता मिथ्याग्रही पुरुष का मन बंदर जैसा है। वह हमेशा युक्तिरूपी गाय की पूँछ पकड कर उसे पीछे खींचता है । मध्यस्थ- वृत्तिवाला व्यक्ति नित्यप्रति युक्ति की और आकर्षित होता है, जबकि दुराग्रही उसे (युक्ति को ) अपनी ओर खिंचता है । अपनी मान्यता, विचारधारा की ओर युक्ति को जोड़-तोड़ कर मोड़ देता है । श्री हारिभद्री - अष्टक में कहा गया है : 1 ' आग्रही बत निनीषति युक्तिं तत्र यत्र मतिरस्य निविष्टा । पक्षपातरहितस्य तु युक्तिर्यत्र तत्र मतिरेति निवेशम् ' ॥ " आग्रही पुरुष की जैसी अपनी समझ, बुद्धि (मति) होती है, वह युक्ति को उसी ओर मोड़ लेता है । यह उसका लक्षण है, जबकि पक्षपातरहित व्यक्ति जहाँ युक्ति होगी, उस ओर बुद्धि को मोड़ता है ! क्योंकि पक्ष, गुट, संप्रदाय, गच्छ अथवा पंथविशेष का आग्रह - पक्षपात दिमाग में किसी युक्ति को प्रवेश ही नहीं करने देता ! युक्तिहीन स्वपक्ष की बातों का दुराग्रह मनुष्य को लाख चाहने पर भी मध्यस्थ नहीं होने देता । अरे वह तो यहाँ तक सोचता रहता है कि 'यदि मैं अन्य पंथ संप्रदाय, या गच्छ की सयुक्तिक बातें सुनूँगा और मुझे जँच गयी तो मेरा समकित चला जाएगा, फलतः में समकितविहीन बन जाऊँगा ।' किसी भी युक्ति की यथार्थता का परिक्षण करने की समझ हम में अवश्य होनी चाहिए । तर्क दो प्रकार के होते हैं : सुतर्क और कुतर्क ! सुतर्क किसे कहा जाए और कुतर्क किसे, यह समझने की सूक्ष्म बुद्धि हममें होना जरूरी है । I इस भूतल पर जो जो मत, पंथ, संप्रदाय अथवा गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ है, वह किसी न किसी तर्क के सहारे हुआ है । अपने किसी विचार या मान्यता के पोषक ऐसे तर्क और उदाहरण मिल जाने पर एकाध पंथ अथवा संप्रदाय का जन्म होता है और उस युक्ति और उदाहरणों की यथार्थता - अयथार्थता का सही
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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